कैसे जीतेंगे जंग लश्कर से
हम तो उलझे हुए हैं बिस्तर से
कोई गर काट कर मुझे देखे
आप निकलेंगे मेरे अंदर से
जब से इस्तीफ़ा भेजा है उसने
मेरा जी भर गया है दफ्तर से
हर दफा रास्ता दिखाता है
मुझको मंज़िल मिली है ठोकर से
हम हराने गए थे बेहतर को
और हम हार आये कम'तर से
शेर पर दाद ए दर्द काफी था
दर्द दुगना हुआ मुकरर्र से
बन के वा'इज़ गए हैं मयखाने
आज हम लड़ पड़े हैं सागर से
फिर से क्या ढूंढ़ती हो तुम मुझमे
तुमको क्या ही मिलेगा खंडर से
मैंने ग़ज़लें सुनाई गारों कों
चीख आने लगी थी पत्थर से
वस्ल का दिन नहीं बताता है
रोज़ लड़ता हूँ मैं कैलेंडर से
चाक ए दिल ठीक क्यों नहीं करता
मस'अला है मुझे रफूगर से
खुद मुझे घर से दर ब दर करके
आप घर पूछते हैं बेघर से
बाम ए मस्जिद पे पानी पीने को
इक परिंदा उड़ा है मंदर से
बारिशें लौट जाएंगी लेकिन
पानी आता रहेगा छप्पर से
दर्द ओ ग़म के भी लूटता है मज़े
ये ही उम्मीद थी सुख़नवर से
हम भले जीत लें ये सारा जहाँ
हार जाएंगे पर मुकद्दर से
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