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चाँदनी जिस की दर-ए-जाँ पे हम अक्सर देखें  - Ahmad Fakhir

चाँदनी जिस की दर-ए-जाँ पे हम अक्सर देखें
कभी उस चाँद को भी हाथ से छू कर देखें

कैसे भर लें दर-ओ-दीवार पे आवेज़ाँ हैं
जिस तरफ़ देखें तिरी याद का मंज़र देखें

कभी बारिश की भी रातों में न चमकी बिजली
यही अरमान रहा घर को मुनव्वर देखें

आँख खुल जाए तो सहरा की ज़मीं पर हों क़दम
नींद आ जाए तो ख़्वाबों में समुंदर देखें

टूट जाने का भी इम्कान बहुत है इस में
यूँ कमानों की तरह आप न खिंच कर देखें

शाम होते ही निकल आते हैं तारे 'फ़ाख़िर'
इक सितारे का मगर रास्ता शब-भर देखें

- Ahmad Fakhir

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