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मिरी हयात के सहरा में छाँव जैसा था  - Ahmad Fakhir

मिरी हयात के सहरा में छाँव जैसा था
अजीब शख़्स था ठंडी हवाओं जैसा था

खुला ही रहता था हर-दम गुलाब की सूरत
मिज़ाज उस का चमन की फ़ज़ाओं जैसा था

उसी ज़माने में रहता हूँ हर ज़माने में
वो जब बदन पे गुलों की क़बाओं जैसा था

ये उस की याद तपाँ क्यूँ है धूप सी 'फ़ाख़िर'
वो बेवफ़ा तो बरसती घटाओं जैसा था

- Ahmad Fakhir

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