0

अब यहाँ साहिब-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा कोई नहीं  - Ahmad Merathi

अब यहाँ साहिब-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा कोई नहीं
तजरबा ये हुआ पाबंद-ए-वफ़ा कोई नहीं

ग़म तो ये है कि जो बरहम थे वो बरहम ही रहे
अपने मिटने का हमें शिकवा गिला कोई नहीं

राह-रौ जादा-ए-हस्ती से गुज़रते ही रहे
छोड़ कर नक़्श-ए-क़दम अपने गया कोई नहीं

हम तो चलते रहे काँटों की गुज़रगाहों पर
हम-सफ़र राह में ता-दूर मिला कोई नहीं

शहर का शहर हुआ आतिश-ए-तख़रीब की नज़्र
लोग कहते हैं कि शो'लों में जला कोई नहीं

यूँही गर्दिश में शब-ओ-रोज़ गुज़र जाते हैं
एक मरकज़ पे ज़माने में रहा कोई नहीं

- Ahmad Merathi

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Ahmad Merathi

As you were reading Shayari by Ahmad Merathi

Similar Writers

our suggestion based on Ahmad Merathi

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari