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क्या किसी बात की सज़ा है मुझे  - Ain Irfan

क्या किसी बात की सज़ा है मुझे
रास्ता फिर बुला रहा है मुझे

ज़िंदा रहने की मुझ को आदत है
रोज़ मरने का तजरबा है मुझे

इतना गुम हूँ के अब मिरा साया
मेरे अंदर भी ढूँडता है मुझे

चाँद को देख कर यूँ लगता हे
चाँद से कोई देखता है मुझे

पहले तो जुस्तुजू थी मंज़िल की
अब कोई काम दूसरा हे मुझे

ये मिरी नींद किस मक़ाम पे है
ख़्वाब में ख़्वाब दिख रहा है मुझे

आइने में छुपा हुआ चेहरा
ऐसा लगता है जानता है मुझे

- Ain Irfan

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