यूँ दबे पाँव याद आती है
ले के दिल का क़रार जाती है
मैं ने परदेस जा के देख लिया
तेरी ख़ुशबू वहाँ भी आती है
अब तो मुझ को मिरी छटी हिस भी
तेरा एहसास ही कराती है
मेरे हमदर्द को भी ले डूबो
मौज-ए-ग़म अब किसे डराती है
जिस क़दर हो सके कमा नेकी
ये बुरे वक़्त काम आती है
चाहे कितनी दबंग हो 'बादल'
नाव काग़ज़ की डूब जाती है
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