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मेरे हिस्से में दिवारें थी, किसी को दर दिए  - Altaf Iqbal

मेरे हिस्से में दिवारें थी, किसी को दर दिए
यूं न जाने हम ने घर के कितने टुकड़े कर दिए

हर किसी को लुत्फ़ आजाये यहाँ ये सोच कर
हम ने इन अलफ़ाज़ को फिर शेर के पैकर दिए

हाय क्या दौर-ए-जिहालत है! नये शायर यहाँ
उस्से आगे उड़ रहे हैं जिसने इनको पर दिए

हाँ वही इक शख्स जिस पर था भरोसा भी बहोत
बस उसी ने दर्द बख्शा, दिल के टुकड़े कर दिए

आज वो ख़ुश है नुमाइश करके ज़ख्मों कि मिरे
कल जिसे मैं ने हिफाज़त के लिए पत्थर दिए

इक वही हमको मनाज़िर में कही दिख ना सका
जिस ने इन आँखों को ऐसे ख़ूब तर मंज़र दिए

बेपर-ओ-बाली कि खाई में गिरे थे जो कभी
हमने उन को भी उड़ानो के लिए शह पर दिए

ग़म है दुनिया में नहीं कर पाए कुछ अल्ताफ़ पर
हम ने रौशन दान में चिडिया को नन्हें घर दिए

- Altaf Iqbal

Shaayar Shayari

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