नमस्कार साथियों,
उम्मीद करता हूँ कि आप सब इस series को follow कर रहे होंगे। इस series में हम अरूज़ की 32 प्रचलित बहरों को एक-एक कर समझ रहे हैं और उन पर लिखी कुछ बेहतरीन ग़ज़लें भी देख रहे हैं।
आज के blog में हम जिस बहर को detail में जानेंगे, उसका नाम "मुज़ारे'अ मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़" है। यह काफ़ी लोकप्रिय बहर है, इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस बहर में बॉलीवुड इंडस्ट्री की फ़िल्मों में बहुत से गीत लिखे गए हैं जो आमजन की ज़ुबान पर दशकों तक छाए रहे। उन्हीं में से एक लोकप्रिय गीत से हम आज के इस ब्लॉग की शुरुआत करेंगे। जिसके बोल कुछ इस प्रकार हैं-
लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिए हमको क़रीब से
फिर आप के नसीब में ये बात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
पास आइए कि हम नहीं आएँगे बार-बार
बाँहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
यह गीत अपने दौर की बहुत ही मशहूर फिल्म "वो कौन थी" का है जिसके गीतकार हैं हिन्दुस्तान के मशहूर गीतकार जनाब "राजा मेहँदी अली ख़ान" साहब हैं।
अगर हम इस गीत के अशआरों की तक़तीअ करें तो हम बख़ूबी पहचान पाएँगे कि यह गीत किस बहर में लिखा गया है।
जी हाँ आपने सही पहचाना यह बहर है -
221/2121/1221/212
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
आइए अब हम इस बहर के Nomenclature को समझते हैं।
Nomenclature/नामकरण:-
पिछले दो blog के समान ही इस बहर को भी मुज़ारे'अ मुसम्मन सालिम (1222/2122/1222/2122) के मूल रुक्नों में फेरबदल कर के ही प्राप्त करते हैं। आपने अगर आज के blog में discuss किए जाने वाले बहर के नाम पर ग़ौर किया हो तो ज़रूर परख लिया होगा कि इस बहर को बनाने में मुख्यत: तीन प्रकार के ज़िहाफ़ ख़रब, कुफ़्फ़ एवं हज़फ़, का इस्तेमाल किया गया है। अब आगे बढ़ते हुए ये तीनों ज़िहाफ़ किस तरह और कहाँ लगे यह भी देखते हैं।
(i) ख़रब:- इसके इस्तेमाल से पहले रुक्न 1222 को फ़ाईलु (221) बनाते हुए उसे मफ़ऊल (221) से बदल लिया और बदले हुए रुक्न को हम अख़रब कहते हैं।
(ii) कुफ़्फ़:- इसके इस्तेमाल से हमने दूसरे रुक्न 2122 और तीसरे रुक्न 1222 को क्रमशः फ़ाइलात (2121) एवं मफ़ाईल (1221) में बदल दिया और बदले हुए रुक्न को मकफ़ूफ़ कहा जाता है।
(iii) हज़फ़:- इस ज़िहाफ़ के लगने से चौथा रुक्न 2122 फ़ाइला (212) हो गया जिसे हमने फ़ाइलुन (212) से बदल लिया और मुज़ाहिफ़ रुक्न को महज़ूफ़ कहा गया।
इस तरह निम्नलिखित बहर प्राप्त होती है:-
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
(221/2121/1221/212)
चलिए अब सारांश देखते हैं:-
बहर का नाम - मुज़ारे'अ
कुल अरकान - 8 (दोनों मिस्रों को मिलाकर इसलिए मुसम्मन (आठ घटकों वाली))
मुज़ाहिफ़ अरकान -
(i) अख़रब
(ii) मकफ़ूफ़
(iii) महज़ूफ़
सो ऊपर लिखे सारांश का उपयोग करते हुए हम इस बहर का नाम इस तरह लिखेंगे:-
बहर-ए-मुज़ारे'अ मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
उम्मीद करता हूँ कि आपको इस बहर का Nomenclature अच्छे से समझ आ गया होगा। चलिए अब इस सिलसिले को आगे बढ़ाया जाए।
अब आपके सामने पेश है जनाब "शहरयार" की एक बहुत ही मशहूर ग़ज़ल जिसके अशआर को आप सबने सौ फ़ीसदी सुना होगा।
Salman Ali
Bohot khoob bohot umda 👏