पिता के माथे आया बस शिकन का दुख
किसी मुफ़्लिस से पूछो पैरहन का दुख
सभी ने राम का ही कष्ट देखा बस
था दशरथ की भी आँखों में वचन का दुख
फ़क़त दिलबर के जिस्मों तक ही सीमित है
न जाने क्यों सुख़न-वर के सुख़न का दुख
मोहब्बत में कलाई काटने वाले
समझते ही नहीं अक्सर बहन का दुख
बिना मर्ज़ी किसी से ब्याह दी जाए
वही लड़की बताएगी छुअन का दुख
गले भी लग न पाए वस्ल में उसके
भला अब और क्या होगा बदन का दुख
यहाँ हर शख़्स ख़ूँ का प्यासा लगता है
यक़ीनन मज़हबी घिन है वतन का दुख
मुझे फुटपाथ का मंज़र बताता है
कि मज़दूरों ने चक्खा है थकन का दुख
Read Full