होता रहा अज़ल से जभी रोशनी का ज़िक्र
तो साथ में हुआ है सदा तीरगी का ज़िक्र
ऐसा रहेगा शायरी में अनकही का ज़िक्र
जैसे की अपनी ज़िंदगी में ज़िंदगी का ज़िक्र
दिल जब से मेरा कर रहा है ख़ामुशी का ज़िक्र
करने लगी है रूह मेरी आगही का ज़िक्र
मैं आतिशे-जाँ सोज़ हूँ प्रहलाद मेरा नाम
मत करना मेरे सामने तुम आतिशी का ज़िक्र
मैं दश्त में प्यासों को तो बातों में लगाता
करना नहीं था तुमने वहाँ तिश्नगी का ज़िक्र
नाकाम हो गए हो उसे पढ़ के तो यहाँ क्यों
लब पे तुम्हारे शेर हैं और शायरी का ज़िक्र
दैरो हरम को आपने ने जबसे है बनाया
होता नहीं कभी ज़मीं पे आदमी का ज़िक्र
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