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होता रहा अज़ल से जभी रोशनी का ज़िक्र - Himanshu Kuniyal

होता रहा अज़ल से जभी रोशनी का ज़िक्र
तो साथ में हुआ है सदा तीरगी का ज़िक्र

ऐसा रहेगा शायरी में अनकही का ज़िक्र
जैसे की अपनी ज़िंदगी में ज़िंदगी का ज़िक्र

दिल जब से मेरा कर रहा है ख़ामुशी का ज़िक्र
करने लगी है रूह मेरी आगही का ज़िक्र

मैं आतिशे-जाँ सोज़ हूँ प्रहलाद मेरा नाम
मत करना मेरे सामने तुम आतिशी का ज़िक्र

मैं दश्त में प्यासों को तो बातों में लगाता
करना नहीं था तुमने वहाँ तिश्नगी का ज़िक्र

नाकाम हो गए हो उसे पढ़ के तो यहाँ क्यों
लब पे तुम्हारे शेर हैं और शायरी का ज़िक्र

दैरो हरम को आपने ने जबसे है बनाया
होता नहीं कभी ज़मीं पे आदमी का ज़िक्र

- Himanshu Kuniyal

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