अगर मगर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
किसी सफ़र में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
गला दबाता है कमरा चीखें घुटन बनी हैं
तुम्हारे घर में हैं ज़िन्दगी, जी नहीं रहे हैं
चराग़ बुझने पे जिस्म करते शदीद उजाला
सियाह-तर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
बिताया बचपन, चड़ी जवानी, बुढापा टेंशन
हम इस पहर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
न बदलू मंज़िल हो रह में दम तोड़ना गँवारा
ता-बा-जिगर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
ये सोचकर के तमाम कोशिश सुकून आए
गुज़र बसर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
कमाल वो लोग कैसे ख़ाना ख़राब होंगे
अज़ीज़-तर में हैं, ज़िन्दगी जी नहीं रहे हैं
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