मेरा सर तेरा आस्ताना है
और क्या तुझको आज़माना है
मैं तेरे दर की ख़ाक चूमूँगा
तेरी मिट्टी मेरा ठिकाना है
ख़ुद को वो फिर से भूल बैठा है
फिर उसे आईना दिखाना है
हम फ़क़ीरों का मोल क्या दोगे
जिनकी ठोकर में ये ज़माना है
क़ब्ल मेरे रहा था कौन यहाँ
घर पे किसके ये घर बनाना है
आदमी दरमियाँ में मरता है
उस तरफ़ रब इधर ज़माना है
आज फिर देर से वो आया है
आज फिर होंठों पर बहाना है
रेल गाड़ी भी आ चुकी होगी
और चराग़ों को भी बुझाना है
तुम नये हो पढ़ो बदन उसका
रास्ता वैसे तो पुराना है
लाश देखी है तुमने शाने पे
लाश पे मेरी, मेरा शाना है
वक़्त-ए-रुख़सत ये दिल को समझाया
दो क़दम पे शराबख़ाना है
सोज़-ए-दिल बढ़ता है तो बढ़ जाए
गाइए लब पे जो तराना है
ख़ौफ़ खाता हूँ घर में जाने से
इतना तन्हा ये आशियाना है
ज़ब्त की हद को छू के निकलेंगे
देखकर उनको मुस्कुराना है
एक तो क़ब्र है बहुत छोटी
बोझ फिर मिट्टी का उठाना है
ख़ुद से तस्दीक़ कर लिया तुझको
अब किसे देखना दिखाना है
कुछ तो मस्जिद भी दूर है घर से
फिर दिल-ए-इन्साँ काफ़िराना है
ज़िन्दगी इस क़दर बुरी भी नहीं
'हैफ़' तू मिल तुझे बताना है
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