Aaftab Rais Panipati

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Aaftab Rais Panipati shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Aaftab Rais Panipati's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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स्वराज का झंडा भारत में गड़वा दिया गाँधी बाबा ने
दिल क़ौम-ओ-वतन के दुश्मन का दहला दिया गाँधी बाबा ने
उल्फ़त की राह में मर जाना पर नाम जहाँ में कर जाना
ये पाठ वतन के बच्चों को सिखला दिया गाँधी बाबा ने
इक धर्म की ताक़त दिखला कर ज़ालिम के छक्के छुड़वा कर
भारत का लोहा दुनिया से मनवा दिया गाँधी बाबा ने
ऐ क़ौम वतन के परवानो लो अपने फ़र्ज़ को पहचानो
अब जेल से ये पैग़ाम हमें भिजवा दिया गाँधी बाबा ने
चर्ख़े की तोप चला दो तुम ग़ैरों के छक्के छुड़ा दो तुम
ये हिन्द का चक्र-सुदर्शन है समझा दिया गाँधी बाबा ने
नफ़रत थी ग़रीबों से जिन को हैं शाद अछूतों से मिल कर
इक प्रेम-प्याला दुनिया को पिलवा दिया गाँधी बाबा ने
गिर्दाब में क़ौम की कश्ती थी तूफ़ान बपा थे आफ़त के
नेशन का बेड़ा साहिल पर लगवा दिया गाँधी बाबा ने
भगवान भगत ने हिम्मत की इक प्रेम-ज्वाला जाग उठी
करवा कर शीर-ओ-शकर सब को दिखला दिया गाँधी बाबा ने
हँस हँस कर क़ौम के बच्चों ने सीनों पर गोलियाँ खाई हैं
भारत की रह में मर मिटना सिखला दिया गाँधी बाबा ने
ग़ैरों के झानसों में आना दुश्वार है हिन्द के लालों को
आँखों से ग़फ़लत का पर्दा उठवा दिया गाँधी बाबा ने
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इक प्रेम पुजारी आया है चरनों में ध्यान लगाने को
भगवान तुम्हारी मूरत पर श्रधा के फूल चढ़ाने को
वो प्रेम का तूफ़ाँ दिल में उठा कि ज़ब्त का यारा ही न रहा
आँखों में अश्क उमँड आए प्रेमी का हाल बताने को
तुम नंद को नैन के तारे हो तुम दीन दुखी के सहारे हो
तुम नंगे पैरों ढाने हो भगतों का मान बढ़ाने को
आँखों से ख़ून टपकता है सीने पर ख़ंजर चलता है
मन-मोहन जल्द ख़बर लेना दीनों की जान बचाने को
फ़ुर्क़त में तुम्हारी क़ल्ब के टुकड़े आँखों से बह जाते हैं
ऐ कृष्ण मुरारी आओ भी रातों को धेर बँधाने को
फिर साँवली छब दिखला दो ज़रा फिर प्रेम का रंग जमा दो ज़रा
गोकुल में श्याम निकल आओ मुरली की टेर सुनाने को
उपदेश धरम का दे कर फिर बलवान बना दो भगतों को
ऐ मोहन जल्द ज़बाँ खोलो गीता के राज़ बताने को
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गिरी है बर्क़-ए-तपाँ दिल पे ये ख़बर सुन कर
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
उठा है नाला-ए-पुर-दर्द से नया महशर
जिगर पे मादर-ए-भारत के चल गए ख़ंजर
शिकस्ता-हाल हुआ क़ौम के हबीबों का
बदन में ख़ुश्क लहू हो गया ग़रीबों का
अभी तो क़ौम ने 'नेहरू' का ग़म उठाया था
अभी तो दास की फ़ुर्क़त ने हश्र ढाया था
अभी तो हिज्र का बिस्मिल के ज़ख़्म खाया था
अभी तो कोह-ए-सितम चर्ख़ ने गिराया था
चले हैं नावक-ए-बेदाद फिर कलेजों पर
कि आज उठ गए अफ़्सोस नौजवाँ रहबर
अदू वतन को तशद्दुद से क्या दबाएँगे
वो अपने हाथ से फ़ित्ने नए जगाएँगे
जो मुल्क-ओ-क़ौम की देवी पे सर चढ़ाएँगे
निसार हो के शहीदों में नाम पाएँगे
गिरेगा क़तरा-ए-ख़ूँ भी जहाँ सपूतों का
फ़िदा-ए-हिंद वहाँ होंगे सैंकड़ों पैदा
जहाँ से मुल्क-ए-अदम नौनिहाल जाते हैं
नुमायाँ कर के सितम-कश का हाल जाते हैं
गिरा के हिन्द में कोह-ए-मलाल जाते हैं
वतन को छोड़ के भारत के लाल जाते हैं
तड़प रहे हैं जुदाई में बे-क़रार-ए-वतन
चले हैं आलम-ए-बाला को जाँ-निसार-ए-वतन
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राम के हिज्र में इक रोज़ भरत ने ये कहा
क़ल्ब-ए-मुज़्तर को शब-ओ-रोज़ नहीं चैन ज़रा
दिल में अरमाँ है कि आ जाएँ वतन में रघुबिर
याद में उन की कलेजे में चुभे हैं नश्तर
कोई भाई से कहे ज़ख़्म-ए-जिगर भर दें मिरा
ख़ाना-ए-दिल को ज़ियारत से मुनव्वर कर दें
राम आएँ तो दिए घी के जलाऊँ घर घर
दीप-माला का समाँ आज दिखाऊँ घर घर
तेग़-ए-फ़ुर्क़त से जिगर पाश हुआ जाता है
दिल ग़म-ए-रंज से पामाल हुआ जाता है
दाग़ हैं मेरे जले दिल पे हज़ारों लाखों
ग़म के नश्तर जो चले दिल पे हज़ारों लाखों
कह रहे थे ये भरत जबकि सिरी-राम आए
धूम दुनिया में मची नूर के बादल छाए
अर्श तक फ़र्श से जय जय की सदा जाती थी
ख़ुर्रमी अश्क हर इक आँख से बरसाती थी
जल्वा-ए-रुख़ से हुआ राम के आलम रौशन
पुर उमीदों के गुलों से हुआ सब का दामन
मोहनी शक्ल जो रघुबिर की नज़र आती थी
आँख ताज़ीम से ख़िल्क़त की झुकी जाती थी
मुद्दतों बा'द भरत ने ये नज़ारा देखा
कामयाबी के फ़लक पर था सितारा चमका
दिल ख़ुशी से कभी पहलू में उछल पड़ता था
हो मुबारक ये कभी मुँह से निकल पड़ता था
होते रौशन हैं चराग़ आज जहाँ में यकसाँ
गुल हुआ आज ही पर एक चराग़-ए-ताबाँ
है मुराद उस से वो भारत का चराग़-ए-रौशन
नाम है जिस का दयानंद जो था फ़ख़्र-ए-वतन
जिस दयानंद ने भारत की पलट दी क़िस्मत
जिस दयानंद ने दुनिया की बदल दी हालत
जिस दयानंद ने गुलज़ार बनाए जंगल
जिस दयानंद ने क़ौमों में मचा दी हलचल
आज वो हिन्द का अफ़्सोस दुलारा न रहा
ग़म-नसीबों के लिए कोई सहारा न रहा
याद है उस की ज़माने में हर इक सू जारी
उस की फ़ुर्क़त की लगी तेग़ जिगर पर कारी
दिल ये कहता है कि इस वक़्त ज़बानें खोलें
आओ मिल मिल के दयानंद की हम जय बोलें
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गो ख़ाक हो चुका है हिन्दोस्ताँ हमारा
फिर भी है कुल जहाँ में पल्ला गराँ हमारा
मुँह तक रहा है अब तक सारा जहाँ हमारा
है नाम किशवरों में विर्द-ए-ज़बाँ हमारा
ज़रख़ेज़ है सरासर ये गुलिस्ताँ हमारा
है ताइर-ए-तिलाई हिन्दोस्ताँ हमारा
भारत में देखते थे हम सनअतें जहाँ की
मशहूर थी जहाँ में कारीगरी यहाँ की
वो बात हिन्दियों ने ग़ैरों के दरमियाँ की
जिस पर झुकी है गर्दन अम्बोह-ए-सरकशाँ की
मिलता था इल्म-ओ-फ़न में हम-सर कहाँ हमारा
है ताइर-ए-तलाई हिन्दोस्ताँ हमारा
तस्लीम कर रहे हैं एस्पेन और जापाँ
सब मानते हैं लोहा जर्मन फ़्रांस-ओ-यूनाँ
अमरीका में है चर्चा इस मुल्क का नुमायाँ
भारत की सल्तनत पर बर्तानिया है नाज़ाँ
ऊँचा है आसमाँ से ये आस्ताँ हमारा
है ताइर-ए-तलाई हिन्दोस्ताँ हमारा
पर्बत की चोटियाँ हैं दरबाँ हमारे दर की
दामन में जिस के पिन्हाँ कानें हैं सीम-ओ-ज़र की
गंग-ओ-जमन पे जिस दम सय्याद ने नज़र की
सरसब्ज़ वादियों से इस की नज़र न सर की
क्या ग़ैरत-ए-इरम है ये बोस्ताँ हमारा
है ताइर-ए-तिलाई हिन्दोस्ताँ हमारा
पैदा किए थे जिस ने अर्जुन कनाद गौतम
आग़ोश में पले थे जिस की ब्यास-ओ-बिक्रम
गोदी में जिस की खेले थे भीम राम भीषम
जिन के सबब से अब तक है हिन्दियों में दम-ख़म
वो मुल्क-ए-बे-बदल है जन्नत-निशाँ हमारा
है ताइर-ए-तिलाई हिन्दोस्ताँ हमारा
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सुनो मादर-ए-हिन्द के नौ-निहालो
सदाक़त पे गर्दन कटा लेने वालो
उठो ख़्वाब-ए-ग़फ़लत मिटा लो मिटा लो
कमर-बस्ता हो जाओ हिम्मत बढ़ा लो
तुम्हें गाम-ए-हिम्मत बढ़ाना पड़ेगा
वतन का मुक़द्दर जगाना पड़ेगा

तरक़्क़ी का भारत की नग़्मा सुना दो
मोहब्बत की गंगा दिलों में बहा दो
जो ख़ुफ़्ता हैं मुद्दत से उन को जगा दो
सदाक़त का दीदों की डंका बजा दो
करो जल्द सैराब उजड़े चमन को
लगें चार चाँद आज अपने वतन को

पड़े हैं कहीं दीन की जाँ के लाले
कहीं दिल हिलाते हैं बेकस के नाले
हुए हैं कहीं नीम-जाँ भोले भाले
मुसीबत के चक्कर में हैं हिन्द वाले
चला है किसी के कलेजे पे नश्तर
धुआँ आह का है किसी के लबों पर

भरोसा ज़मीं का न चर्ख़-ए-कुहन का
तवक्कुल है परमात्मा पर वतन का
नज़ारा है गुलज़ार किश्वर में बन का
हुआ ख़ार हर फूल अपने चमन का
न छोड़ो मगर हौसला शेर मरदो
उठो बेड़ा मंझदार से पार कर दो

शिकायत का करना नहीं याद तुम को
नहीं आदत-ए-शोर-ओ-फ़रियाद तुम को
सितम-गर करे लाख बर्बाद तुम को
करे गर्दिश-ए-चर्ख़ नाशाद तुम को
ज़रा कान पर जूँ न रेंगे तुम्हारे
चलें गर्दनों पे जो ख़ंजर दो धारे

सदा ज़ुल्म की आ रही है जहाँ से
कि ज़ाहिर हैं बे-दाद पीर-ओ-जवाँ से
टपकती हैं गर हसरतें अब यहाँ से
लपकते हैं शो'ले सितम के वहाँ से
मगर तुम हो इस पे भी महव-ए-क़नाअत
क़नाअ'त नहीं ये है ज़ोफ़-ओ-कसालत
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आमद है साल-ए-नौ की समाँ है बहार का
सरसब्ज़ गुलिस्ताँ है दिल-ए-दाग़-दार का
इश्क़-ए-वतन में आशिक़-ए-सादिक़ है जाँ-ब-लब
क्या हाल पूछते हो ग़रीब-उद-दयार का
यारब कहेंगे किस तरह हम बेकसों के दिन
याद आया है क़फ़स में ज़माना बहार का
यूँ अश्क-ए-ग़म टपकते हैं आँखों से क़ौम की
मुमकिन नहीं है टूटना अश्कों के तार का
इक बार क़त्ल-ए-आम करो तेग़-ए-ज़ुल्म से
अच्छा नहीं है जौर-ओ-सितम बार बार का
ऐ मादर-ए-वतन के सपूतो बढ़े चलो
ये आज हो रहा है इशारा बहार का
क़ातिल को नाज़ क़ुव्वत-ए-बाज़ू पे है अगर
मज़लूम को भरोसा है परवरदिगार का
ऐ मादर-ए-वतन ज़रा दस्त-ए-दुआ' उठा
मक़्तल में इम्तिहाँ है तिरे ग़म-गुसार का
गिरगिट की तरह रंग बदलता है दम-ब-दम
क्या ए'तिबार ग़ैर के क़ौल-ओ-क़रार का
अग़्यार से करम की तवक़्क़ो फ़ुज़ूल है
अर्सा गुज़र चुका है बहुत इंतिज़ार का
ऐ 'आफ़्ताब' दहर का शिकवा है क्यों तुझे
होता नहीं है कोई दिल-ए-बे-क़रार का
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सरफ़रोशान-ए-वतन का ये ख़याल अच्छा है
हिन्द के वास्ते मरने का मआल अच्छा है
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन हो न अगर दिल में निहाँ
ऐसे जीने से तो मरने का ख़याल अच्छा है
ज़र्रा-ए-ख़ाक-ए-वतन मेहर-ए-दरख़्शाँ है मुझे
वो समझते रहें इंग्लैण्ड का माल अच्छा है
जाँ-ब-लब है सितम-ईजाद के हाथों से वतन
कौन कहता है मिरे हिन्द का हाल अच्छा है
उन को पैरिस के नज़ारों पे फ़िदा होने दो
मुझ को भारत के लिए रंज-ओ-मलाल अच्छा है
करने देता नहीं जल्लाद ज़बाँ से उफ़ तक
दिल में कहता है ग़रीबों का सवाल अच्छा है
लाजपत-राय की शमशान से आती है सदा
मुल्क की राह में मिटने का ख़याल अच्छा है
अपने मतलब के लिए मुल्क का दुश्मन जो बने
ऐसे कम्बख़्त का दुनिया में ज़वाल अच्छा है
ज़र के थालों में मटन चाप उड़ाने दो उन्हें
हम ग़रीबों को मगर जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है
'आफ़्ताब' आज फँसा जाता है फिर ताइर-ए-दिल
हाए अफ़्सोस कि सय्याद का जाल अच्छा है
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