Ahmad Irfan

Ahmad Irfan

@ahmad-irfan

Ahmad Irfan shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Irfan's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

12

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
ज़मीन-ए-दिल में मोहब्बत की फ़स्ल बोई गई
सो अब की बार मुसीबत की फ़स्ल बोई गई

चलें तो पैरों के छाले भी बोल उठते हैं
सफ़र में जैसे मशक़्क़त की फ़स्ल बोई गई

गिला ज़मीं से करूँ क्या कि आसमान पे भी
मिरे जनम पे शिकायत की फ़स्ल बोई गई

तुम्हारा रिज़्क़ तो आना है आसमाँ से मगर
मिरे लिए तो अज़िय्यत की फ़स्ल बोई गई

इसी लिए तो मयस्सर नहीं सुकून मुझे
मिरे वजूद में वहशत की फ़स्ल बोई गई

अजब नहीं है कि जल्दी में छोड़ दूँ दुनिया
हर एक शख़्स में उजलत की फ़स्ल बोई गई

तुम्हें ख़बर है कि हम साहिली परिंदे हैं
हमारे वास्ते हिजरत की फ़स्ल बोई गई

उगे हुए थे हर इक सम्त आइने 'अहमद'
बड़े यक़ीन से हैरत की फ़स्ल बोई गई
Read Full
Ahmad Irfan
जब इब्तिदा चराग़ थी जब इंतिहा चराग़
महफ़िल के इख़्तिताम पे फिर क्या हुआ चराग़

तू ही बता कि अंजुमन-आराई क्या हुई
इस अंजुमन में तू भी तो जलता रहा चराग़

मेरे क़रीब आ के भी इतना गुरेज़ क्यूँ
मेरे नदीम था कभी मैं भी तिरा चराग़

फिर उस के बाद हैरत-ए-वहम-ओ-गुमान थी
जब बन गया वजूद में इक आइना चराग़

गुज़री जो मुझ पे गुज़री मिरी बात और है
लेकिन जो तुझ पे गुज़री मुझे वो सुना चराग़

मंज़र है रात का ही तिरे कैनवस पे क्यूँ
जुगनू बना शजर कभी पत्ते बना चराग़

चौपाल की कहानी के किरदार क्या हुए
शब ख़त्म हो गई है सो बुझने लगा चराग़

'अहमद' बस एक रात में क़िस्सा तमाम शुद
मैं था फ़सील-शाम पे जलता हुआ चराग़
Read Full
Ahmad Irfan
लगी थी उम्र परिंदों को घर बनाते हुए
किसी ने क्यूँ नहीं सोचा शजर गिराते हुए

ये ज़िंदगी थी जो धुतकारती रही मुझ को
मैं बात करता रहा उस से मुस्कुराते हुए

बदन था चूर मिरा हिज्र की मशक़्क़त से
सो नींद आई मुझे दर्द को सुलाते हुए

कोई तो उस पे क़यामत गुज़र गई होगी
कि आप-बीती वो रोने लगा सुनाते हुए

अजीब नींद में था ख़्वाब-गाह-ए-हस्ती की
मैं इस जहाँ से तिरे उस जहाँ में जाते हुए

कहानी-गो के हर इक लफ़्ज़ में थी जादूगरी
रुला दिया था हर इक शख़्स को हँसाते हुए

न मेरी चश्म-ए-तमन्ना में जच सकी दुनिया
पलट के देखता कैसे उसे मैं जाते हुए

मैं जल उठा था तिरे ही ख़याल की लौ से
तुझे ख़याल न आया मुझे बुझाते हुए
Read Full
Ahmad Irfan