Ahmad Kamal Hashmi

Ahmad Kamal Hashmi

@ahmad-kamal-hashmi

Ahmad Kamal Hashmi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Kamal Hashmi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
वो बुझ गया तो अँधेरों को भी मलाल रहा
वो इक चराग़ जो जलने में भी बे-मिसाल रहा

कभी भुला न सका दिल-शिकस्तगी अपनी
जुड़ा तो जुड़ के भी उस आइने में बाल रहा

मिरी हयात ने हातिम बना दिया मुझ को
हर इक सवाल के बा'द इक नया सवाल रहा

हमेशा मैं ने भी नाकामियों से काम लिया
तमाम-उम्र मिरा 'मीर' जैसा हाल रहा

तुम्हारे बा'द किसी से फ़रेब खाया नहीं
तुम्हारा मुझ से बिछड़ना भी नेक-फ़ाल रहा

ग़मों को हावी न होने दिया कभी दिल पर
शब-ए-फ़िराक़ भी ज़िक्र-ए-शब-ए-विसाल रहा

कहाँ हरम है किधर का'बा है किधर रुख़ है
नमाज़-ए-इश्क़ में उस का कहाँ ख़याल रहा

ग़ज़ल उसी की थी हावी तमाम ग़ज़लों पर
वहाँ भी रौनक-ए-बज़्म-ए-सुख़न 'कमाल' रहा
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Ahmad Kamal Hashmi
दिल मुझे समझाता है तो दिल को समझाता हूँ मैं
जाने कैसे अक़्ल की बातों में आ जाता हूँ मैं

दिन मुझे हर दिन बना लेता है अपना यर्ग़माल
रात जब आती है तो ख़ुद को छुड़ा लाता हूँ मैं

कोई झूटा वा'दा भी करता नहीं है वो कभी
ख़ुद उमीदें बाँध लेता हूँ बहल जाता हूँ मैं

ज़िंदा रहने का मुझे फ़न आज तक आया नहीं
फिर भी जीना चाहता हूँ क्या ग़ज़ब ढाता हूँ मैं

डाल कर आँखों में आँखें करनी है कुछ गुफ़्तुगू
ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी तो रुक अभी आता हूँ मैं

मैं ने दरिया के हवाले कर दिया है तन-बदन
मौजों की रौ में ख़मोशी से बहा जाता हूँ मैं

अब न आएगा मिरे शे'रों में तेरा तज़्किरा
ऐ मिरी जान-ए-ग़ज़ल तेरी क़सम खाता हूँ मैं

शिद्दत-ए-ग़म ही इलाज-ए-ग़म भी होता है 'कमाल'
बढ़ती हैं तारीकियाँ तो रौशनी पाता हूँ मैं
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Ahmad Kamal Hashmi
हुस्न-ए-बाज़ार तो है गर्मी-ए-बाज़ार नहीं
बेचने वाले हैं सब कोई ख़रीदार नहीं

आओ बतलाएँ कि वा'दों की हक़ीक़त क्या है
पेड़ ऊँचे हैं सभी कोई समर-दार नहीं

दिल की उफ़्ताद मिज़ाजी से परेशाँ हूँ मैं
थी तलब जिस की अब उस का ही तलबगार नहीं

अब जिसे देखो वही घूम रहा है बाँधे
दस्तियाब अब किसी दूकान पे दस्तार नहीं

ऐ ज़ुलेख़ा तू ने जो दाम लगाया अब के
उस पे यूसुफ़ तो कोई बिकने को तय्यार नहीं

आसमाँ छत है ज़मीं फ़र्श कुशादा है मकाँ
मेरा घर वो है कि जिस के दर-ओ-दीवार नहीं

है सुख़न-फ़हमी का हर शख़्स को दा'वा लेकिन
कौन ऐसा है जो 'ग़ालिब' का तरफ़-दार नहीं

ऐ 'कमाल' ऐसे में क्या लुत्फ़-ए-सफ़र पाओगे
राह में धूप नहीं संग नहीं ख़ार नहीं
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Ahmad Kamal Hashmi
आह भरता हूँ तो भरने भी नहीं देता है
और वो ख़ामोशी से मरने भी नहीं देता है

नाख़ुदा कश्ती को साहिल से लगाता भी नहीं
बीच दरिया में उतरने भी नहीं देता है

दूसरा ज़ख़्म लगा देता है दिल पर मेरे
पहले को ठीक से भरने भी नहीं देता है

मेरे आँसुओं से वो संग पिघलता भी नहीं
सर पटक कर मुझे मरने भी नहीं देता है

बाज़ आता भी नहीं ज़र्ब लगाने से वो
टूट कर मुझ को बिखरने भी नहीं देता है

मेरे सपनों को वो सच भी नहीं होने देता
मगर उम्मीद को मरने भी नहीं देता है

आइने को मिरे चेहरे से शिकायत है बहुत
आइना मुझ को सँवरने भी नहीं देता है

उस की महफ़िल में पहुँचने की तमन्ना मत कर
वो तो कूचे से गुज़रने भी नहीं देता है
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Ahmad Kamal Hashmi