Akhtar Ziai

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@akhtar-ziai

Akhtar Ziai shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhtar Ziai's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
अपनी क़िस्मत में ग़म-ए-अर्सा-ए-हिज्राँ है तो क्या
अश्क मिन्नत-कश-ए-गहवारा-ए-मिज़्गाँ है तो क्या

हुस्न अर्बाब-ए-हक़ीक़त को है नाज़ूरा-ए-हक़
शैख़ जी आप को अंदेशा-ए-ईमाँ है तो क्या

वक़्त के साथ फ़ुज़ूँ होता है एहसास-ए-ज़ियाँ
फ़हम-ओ-इदराक ही ग़ारत-गर-ए-इंसाँ है तो क्या

बे-मुहाबाना मसर्रत के तआ'क़ुब में न दौड़
दाम-ए-नैरंग पस-ए-सरहद-ए-इम्काँ है तो क्या

हम तो इक उम्र से हैं मुंतज़िर-ए-मर्ग-ए-ख़िज़ाँ
अब के लोगों में अगर ज़िक्र-ए-बहाराँ है तो क्या

मौसम आता है तो काँटों ही में गुल खिलते हैं
दस्त-ए-गुल-चीं में अगर नज़्म-ए-गुलिस्ताँ है तो क्या

ज़ेर-ए-ता'मीर इसी हाल में है मुस्तक़बिल
इस में कुछ रेख़्त का पहलू भी नुमायाँ है तो क्या
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Akhtar Ziai
तुझ से ऐ ज़ीस्त हमें जितने हसीं ख़्वाब मिले
नक़्श-बर-आब कभी सूरत-ए-सीमाब मिले

हम ने हर मौज-ए-हवादिस को किनारा समझा
हम को हर मौज में लिपटे हुए गिर्दाब मिले

गर्दिश-ए-वक़्त ने गहना दिए कितने सूरज
सुब्ह की गोद में दम तोड़ते महताब मिले

जब भी सदियों की फ़ुतूहात को मुड़ कर देखा
ख़ूँ में लुथड़े हुए तारीख़ के अबवाब मिले

सैल-ए-ज़ुल्मात में है क़ाफ़िला-ए-मंज़िल-ए-शब
काश ऐसे में कोई नज्म-ए-उफ़ुक़-ताब मिले

अहल-ए-किरदार को देखा है सर-ए-दार अक्सर
अहल-ए-गुफ़्तार तह-ए-साया-ए-मेहराब मिले

फ़स्ल-ए-गुल आई है यारो तो ग़नीमत जानो
फूल अफ़्सुर्दा सही ज़ख़्म तो शादाब मिले

दिल के हर दाग़ से वाबस्ता है रूदाद-ए-सितम
रंज बढ़ता गया जूँ जूँ मुझे अहबाब मिले

मुझ को 'अख़्तर' न मिली नाला-ए-शब-गीर की दाद
क़र्या-ए-शौक़ के सब लोग गराँ-ख़्वाब मिले
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मैं समझता था हक़ीक़त आश्ना हो जाएगा
क्या ख़बर थी मेरी बातों से ख़फ़ा हो जाएगा

रफ़्ता-रफ़्ता इब्तिला-ए-ग़म शिफ़ा हो जाएगा
दर्द ही हद से गुज़रने पर दवा हो जाएगा

हम पे तो पहले ही ज़ाहिर था मआल-ए-बंदगी
पूजने जाओगे जिस बुत को ख़ुदा हो जाएगा

तजरबे की आँच से आख़िर रक़ीब-ए-रू-सियह
उन की क़ुर्बत से हमारा हम-नवा हो जाएगा

आह जो सीने से निकलेगी फ़ुग़ाँ बन जाएगी
अश्क जो आँखों से टपकेगा दुआ बन जाएगा

दम-ब-दम जो साथ देने का किया करता था अहद
किस को था मा'लूम कि इक दिन जुदा हो जाएगा

छोड़ने वाले सर-ए-राहे हमें तेरे लिए
ज़िंदगानी का सफ़र बे-मुद्दआ हो जाएगा

इक निगाह-ए-लुत्फ़ वो पहली सी दिलदारी के साथ
दान कर दीजे ग़रीबों का भला हो जाएगा

सहल-तर होगा नजात-ए-ख़ल्क़ में क़र्ज़-ए-वफ़ा
जान भी देगा अगर 'अख़्तर' अदा हो जाएगा
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