Jagat Mohan Lal Ravan

Jagat Mohan Lal Ravan

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Jagat Mohan Lal Ravan shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jagat Mohan Lal Ravan's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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निकल जाए यूँही फ़ुर्क़त में दम क्या
न होगा आप का मुझ पर करम क्या

हँसे भी रोए भी लेकिन न समझे
ख़ुशी क्या चीज़ है दुनिया में ग़म क्या

मुबारक ज़ालिमों को ज़ुल्म हम पर
जो अपना ही किया है उस का ग़म क्या

मिटा जब इम्तियाज़-ए-कुफ़्र ओ ईमाँ
मकान-ए-काबा क्या बैतुस-सनम क्या

नहीं जब क़ुव्वत-ए-एहसास दिल में
ग़म-ए-दुनिया सुरूर-ए-जम-ए-जम क्या

गुज़र ही जाएँगे ग़ुर्बत के दिन भी
करें दो दिन को अब अख़्लाक़ कम क्या

मिरी बिगड़ी हुई तक़दीर भी है
तुम्हारे तुर्रा-ए-गेसू का ख़म क्या

मिरी तक़दीर में लिक्खा है तू ने
बता ऐ मालिक-ए-लौह ओ क़लम क्या

भुला देगी हमें दो दिन में दुनिया
हमारी शाइरी क्या और हम क्या

हर इक मुश्किल को हल करती है जब मौत
करूँ आगे किसी के सर को ख़म क्या

'रवाँ' के दर्द का आलम न पूछो
कोई यूँ होगा मस्त-ए-जाम-ए-जम क्या
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Jagat Mohan Lal Ravan
गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा
तू ही देख ऐ मिरे ख़ल्लाक़ हुस्न-ए-राएगाँ मेरा

ये कह कर रूह निकली है तन-ए-आशिक़ से फ़ुर्क़त में
मुझे उजलत है बढ़ जाए न आगे कारवाँ मेरा

हवा उस को उड़ा ले जाए अब या फूँक दे बिजली
हिफ़ाज़त कर नहीं सकता मिरी जब आशियाँ मेरा

ज़मीं पर बार हूँ और आसमान से दूर ऐ मालिक
नहीं मालूम कुछ आख़िर ठिकाना है कहाँ मेरा

मुझे नग़्मे का लुत्फ़ आता है रातों की ख़मोशी में
दिल-ए-बशिकस्ता है इक साज़-ए-आहंग फ़ुग़ाँ मेरा

वहीं से इब्तिदा-ए-कूचा-ए-दिलदार की हद है
क़दम ख़ुद चलते चलते आ के रुक जाए जहाँ मेरा

ज़रा दूर और है ऐ कश्ती-ए-उम्र-ए-रवाँ साहिल
कि इस बहर-ए-जहाँ में हर नफ़स है बादबाँ मेरा

हुई जाती है तन्हाई में लज़्ज़त रूह की ज़ाएअ'
लुटा जाता है वीराने में गंज-ए-शाएगाँ मेरा

अनासिर हँसते हैं दुनिया की वुसअ'त मुस्कुराती है
किसी से पूछते हैं अहल-ए-बीनश जब निशाँ मेरा

मिरे बाद और फिर कोई नज़र मुझ सा नहीं आता
बहुत दिन तक रक्खेंगे सोग अहल-ए-ख़ानदाँ मेरा

ग़नीमत है नफ़स दो चार जो बाक़ी हैं अब वर्ना
कभी का लुट चुका सरमाया-ए-सोद-ओ-ज़ियाँ मेरा

अभी तक फ़स्ल-ए-गुल में इक सदा-ए-दर्द आती है
वहाँ की ख़ाक से पहले जहाँ था आशियाँ मेरा

'रवाँ' सच है मोहब्बत का असर ज़ाएअ' नहीं होता
वो रो देते हैं अब भी ज़िक्र आता है जहाँ मेरा
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Jagat Mohan Lal Ravan
अंजाम ये हुआ है दिल-ए-बे-क़रार का
थमता नहीं है पाँव हमारे ग़ुबार का

पहले किया ख़याल न गुल का न ख़ार का
अब दुख रहा है पाँव नसीम-ए-बहार का

पैहम दिए वो रंज कि इंसाँ बना दिया
मिन्नत-पज़ीर हूँ सितम-ए-रोज़गार का

उस को ख़िज़ाँ के आने का क्या रंज क्या क़लक़
रोते कटा हो जिस को ज़माना बहार का

मख़्फ़ी है इस में राज़-ए-बक़ा-ए-हयात-ए-इश्क़
क्या पूछते हो हाल दिल-ए-बे-क़रार का

मजबूरियाँ सितम हैं वगरना ख़ुदा की शान
मैं और यूँ गुज़ार दूँ मौसम बहार का

ग़ाफ़िल निगाह-ए-होश से रंग-ए-चमन को देख
परवर्दा-ए-ख़ज़ाँ है ज़माना बहार का

निकला है दम 'रवाँ' का तमन्ना के साथ साथ
अल्लाह-रे ज़ोर नाला-ए-बे-इख़्तियार का
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Jagat Mohan Lal Ravan
तक़दीर जब मुआविन-ए-तदबीर हो गई
मिट्टी पे की निगाह तो इक्सीर हो गई

दिल जाँ निसार-ए-मय है ज़बाँ ताइब-ए-शराब
इस कशमकश में रूह की ताज़ीर हो गई

छींटें जो ख़ूँ की दामन-ए-क़ातिल में रह गईं
महशर में मेरे क़ल्ब की तफ़्सीर हो गई

या क़त्ल कीजिए मुझे या बख़्श दीजिए
अब हो गई हुज़ूर जो तक़्सीर हो गई

शबनम ओढ़ी गुलों से मिरा नक़्शा खिंच गया
मुरझा गई कली मिरी तस्वीर हो गई

ज़िंदानियान-ए-काकुल-ए-हस्ती किधर को जाएँ
इक ज़ुल्फ़ सब के पाँव की ज़ंजीर हो गई

मैं कह चला था दावर-ए-महशर से हाल-ए-दिल
इक सुर्मगीं निगाह गुलू-गीर हो गई

बस थम गया सफ़ीर-ए-अमल कह के या नसीब
जिस जा पे ख़त्म मंज़िल-ए-तदबीर हो गई

तोड़ा है दम अभी अभी बीमार-ए-हिज्र ने
आए मगर हुज़ूर को ताख़ीर हो गई

जब अपने आप पर हमें क़ाबू मिला 'रवाँ'
आसान राज़-ए-दहर की तफ़्सीर हो गई
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Jagat Mohan Lal Ravan
सब को गुमान भी कि मैं आगाह-ए-राज़ था
किस दर्जा कामयाब फ़रेब-ए-मजाज़ था

मिस्ल-ए-मह-ए-दो-हफ़्ता वही सरफ़राज़ था
जिस की जबीन-ए-शौक़ पे दाग़-ए-नियाज़ था

पूछो न हाल-ए-कशमकश-ए-यास-ओ-आरज़ू
वो भी अजीब मरहला-ए-जाँ-गुदाज़ था

जब तक हक़ीक़तों से मिरा दिल था बे-ख़बर
बेचारा मुब्तला-ए-ग़म-ए-इम्तियाज़ था

झोंका हवा-ए-सर्व का रिंदों के वास्ते
ख़ुम-ख़ाना-ए-बहार से हुक्म-ए-जवाज़ था

अहल-ए-जहाँ के कुफ़्र ओ तवहहुम का क्या इलाज
आईना कह रहा है कि आईना-साज़ था

मुज़्मिर थे मेरी ज़ात में असरार-ए-काएनात
मैं आप राज़ आप ही ख़ुद शरह-ए-राज़ था

आएँ पसंद क्या उसे दुनिया की राहतें
जो लज़्ज़त-आश्ना-ए-सितम-हा-ए-नाज़ था

ख़िल्क़त समझ रही थी जिसे इज़्तिराब-ए-दिल
पिन्हाँ उसी में हस्ती-ए-आशिक़ का राज़ था

अच्छा हुआ हमेशा को चुप हो गया 'रवाँ'
इक इक नफ़स ग़रीब का हस्ती-गुदाज़ था
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Jagat Mohan Lal Ravan
यूँही गर हर साँस में थोड़ी कमी हो जाएगी
ख़त्म रफ़्ता रफ़्ता इक दिन ज़िंदगी हो जाएगी

देखने वाले फ़क़त तस्वीर-ए-ज़ाहिर पर न जा
हर नफ़स के साथ दुनिया दूसरी हो जाएगी

गर यही फ़स्ल-ए-जुनूँ-ज़ा है यही अब्र-ए-बहार
अज़्मत-ए-तौबा निसार-ए-मय-कशी हो जाएगी

मर्ग-ए-बे-हंगाम कहते हैं जिसे आज अहल-ए-दर्द
कल यही सूरत बदल कर ज़िंदगी हो जाएगी

ज़िक्र है ज़िंदाँ में वो गुलज़ार पर बिजली गिरी
आज मेरे आशियाँ में रौशनी हो जाएगी

सज्दा गाह-ए-आम पर सज्दे से कुछ हासिल नहीं
मुफ़्त आलूदा जबीन-ए-बंदगी हो जाएगी

ख़त्म है शब चेहरा-ए-मशरिक़ से उठती है नक़ाब
दम-ज़दन में रौशनी ही रौशनी हो जाएगी

मुत्तसिल हैं ज़ोफ़ ओ क़ुव्वत की हदें हाँ होश्यार
वर्ना इस तर्क-ए-ख़ुदी में ख़ुद-कुशी हो जाएगी

ज़ख़्म भी ताज़ा है और दिल भी नहीं मानूस-ए-दर्द
रफ़्ता रफ़्ता यूँही आदत सब्र की हो जाएगी

शम्अ सा जब शाम ही से है गुदाज़-ए-दिल 'रवाँ'
सुब्ह तक क्या जाने क्या हालत तिरी हो जाएगी
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Jagat Mohan Lal Ravan