kaashif shakiil

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kaashif shakiil shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in kaashif shakiil's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
गुज़र रही है जुदाई जो तुझ पे शाक़ तो देख
कभी कभी तू वरा-ए-हद-ए-फ़िराक़ तो देख

मिरी तलब न सही मेरा इश्तियाक़ तो देख
इबारतों से परे आ ज़रा सियाक़ तो देख

जुदा हैं जिस्म हमारे जुदा हैं रंग-ओ-रविश
तू उन को छोड़ के रूहों का इत्तिसाक़ तो देख

तू इख़्तिलाफ़ की सारी हदें भुला तो सही
तू इख़्तिलाफ़ पे हम सब का इत्तिफ़ाक़ तो देख

कटे है वक़्त भले मुझ को काट कर ही कटे
अटूट ग़म है ग़मों का ये तुमतराक़ तो देख

वो है मरीज़ जो हर दम मतीन रहता है
कभी मिज़ाह तो सुन और कभी मज़ाक़ तो देख

वो मीठे बोल हक़ीक़त में ज़हर-ए-क़ातिल हैं
तू इस नक़ाब के पीछे छुपा निफ़ाक़ तो देख

ये हिज्र हिज्र नहीं है कोई क़यामत है
ये चश्म-ए-तर न सही दिल का इंशिक़ाक़ तो देख

हुए हैं हुस्न के विरसा तमाम बेगाने
है ख़ाली हाथ ये काशिफ़ 'शकील' आक़ तो देख
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अब छोड़ भी दो यार बदन टूट रहा है
बाँहों में गिरफ़्तार बदन टूट रहा है

इस किब्र से कब किस को सुकूँ आया मयस्सर
मस्त-ए-मय-ए-पिंदार बदन टूट रहा है

दामन जो हुआ चाक तो कुछ ग़म नहीं लेकिन
ऐ हुस्न की सरकार बदन टूट रहा है

हर रोज़ पतंगों से चराग़ों ने कहा ये
मिल कर न करो वार बदन टूट रहा है

बरसों से मिरा जिस्म दिल-ओ-जान-ओ-जिगर से
है बर-सर-ए-पैकार बदन टूट रहा है

रोटी के लिए रोज़ थकन साथ हूँ लाता
अब मत करो सिंगार बदन टूट रहा है

मिट्टी के खिलौनों को उठाए हुए बुढ़िया
ढूँढे है ख़रीदार बदन टूट रहा है

इंकार ज़बानी था कोई जंग नहीं थी
फिर क्यों मिरा बे-कार बदन टूट रहा है

चढ़ती हुई हर साँस नहीं आख़िरी होती
अब बस भी करो प्यार बदन टूट रहा है

काँटों की ज़मीं संग की बारिश में यूँ 'काशिफ़'
चलना हुआ दुश्वार बदन टूट रहा है
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फ़लक की चीज़ ज़मीं पर उतार लाई गई
ये इश्क़ क्या था कि जिस में अना गँवाई गई

हज़ार जन्मों का बंधन कहा था उस ने जिसे
ये दोस्ती तो फ़क़त दो क़दम निभाई गई

तिरे लबों से छलकती रही शराब मगर
हम ऐसे तिश्ना-लबों को नहीं पिलाई गई

न ख़ुश-अदा ही थी वो और न दिल-रुबा थी मगर
हमारी ज़िद थी सो ज़िद में ही वो पटाई गई

मैं संग-दिल तो नहीं हूँ कि नक़्श दाइम हो
तुम्हारी याद तो अब हो गई है आई गई

सहेलियाँ थीं ब-ज़िद और उन्हें था पास-ए-हया
हमारे नाम की मेहंदी नहीं दिखाई गई

मिरा वजूद था उर्यां बदन के पैकर में
हिजाब के लिए तेरी क़बा सिलाई गई

तुम्हारे साथ मिरी नींद ने भी हिजरत की
अगरचे नींद की गोली बहुत खिलाई गई

अब इल्तिफ़ात की उम्मीद मत रखो 'काशिफ़'
निकाह क्या हुआ बरसों की आश्नाई गई
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इश्क़ का मरहला मेरे लिए दुश्वार नहीं
मेरे क़िस्से में शहंशाह का किरदार नहीं

संग बरसेगा न लोगों की मलामत होगी
मेरी दुनिया में कोई नज्द का बाज़ार नहीं

कोई फ़रहाद नहीं मैं जो करूँ कोह-कनी
मेरे अंजाम में तेशे का भी किरदार नहीं

रोमियो जैसा मरूँ ज़हर-ए-मोहब्बत खा कर
जूलिएट सी कोई लड़की मुझे दरकार नहीं

हीर के वास्ते जोगी मैं बनूँ ना-मुम्किन
राँझे की तरह बिछड़ने को मैं तय्यार नहीं

मैं वो यूसुफ़ नहीं जो पाकी-ए-दामन देखे
दौर-ए-हाज़िर में ज़ुलेख़ा की भी सरकार नहीं

मैं नए दौर का आशिक़ हूँ मिरा मौक़िफ़ है
इश्क़ संसार में है इश्क़ ही संसार नहीं

घंटों बातें मैं करूँ हाए हेलो लिखता रहूँ
गरचे शाइ'र हूँ मिरी जान मैं बे-कार नहीं

आज मिलना है कहा पीर को उस ने 'काशिफ़'
मैं ने रिप्लाई किया जान ये इतवार नहीं
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