Madhurima Singh

Madhurima Singh

@madhurima-singh

Madhurima Singh shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Madhurima Singh's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
बहुत हैं ज़िंदगी में ग़म सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम
तुम्हारे रू-ब-रू हैं हम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

तुम्हारी ख़ामुशी पर बस हमारी जान जाती है
हमारी ज़िंदगी है कम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

कहा था तुम ने आँखों में ये दुनिया भूल जाओगे
तुम्हें क्या ख़ौफ़ है हर दम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

हमें दे दो उदासी आँख में कब तक छुपाओगे
बना देंगे इसे शबनम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

सजा कर चाँद का गजरा ये पगली रात आती है
बिखरती साँस की सरगम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

लहराते गुल-मोहर पर ये उतरती साँझ ठहरी है
बदल जाए न ये मौसम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम

फ़साना दिल का कह लो आज जाने कब मिलें हम तुम
चराग़ों में अभी है दम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम
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Madhurima Singh
मेरे अंदर जैसे कोई ठंडा सहरा जलता है
आहट आहट यूँ लगता है मुझ में कोई चलता है

मैं ने तो देहरी पर बैठे बैठे रात गुज़ारी है
मेरे बिस्तर पर फिर तन्हा करवट कौन बदलता है

आग हवन की तेज़ है इतनी सारे मंत्र भुला देगी
इस वेदी पर सीधा वाला हाथ हमेशा जलता है

इस नगरी में काँच के टुकड़े पत्थर काँटे बिखरे हैं
ध्यान से चलना इस नगरी में अक्सर पाँव फिसलता है

तेज़ आँच में जल कर चूड़ी सतरंगी बन जाती है
मेरी साँसों का शीशा भी कितने रंग बदलता है

वो चाहे तो हाथ बढ़ा कर घर के अंदर ले जाए
उस के दर पर गिरने वाला ख़ुद से कहाँ सँभलता है

चाँद के आँसू शबनम बन कर धरती के सीने पर हैं
सूरज की आहों से जैसे बर्फ़ का दरिया गलता है
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