Sabiha Sadaf

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@sabiha-sadaf

Sabiha Sadaf shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Sabiha Sadaf's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
होश-ओ-ख़िरद से दूर दूर वहम-ओ-गुमाँ के आस-पास
करता है दिल तवाफ़ क्यों दुश्मन-ए-जाँ के आस-पास

महव-ए-ख़याल-ए-यार हूँ मुझ को ग़रज़ किसी से क्या
रहता है इक हिसार सा अब जिस्म-ओ-जाँ के आस-पास

इक शोर ख़ामुशी में है इक ज़िंदगी है मौत सी
दहशत का इक हुजूम है अम्न-ओ-अमाँ के आस-पास

गर्दिश-ए-माह-ओ-साल ने ऐसा किया निढाल बस
घबरा के उठ गए क़दम दार-ए-अमाँ के आस-पास

तुझ से हमारा कुछ नहीं रिश्ता तो फिर बता मुझे
रहता है तू मुक़ीम क्यों ऐवान-ए-जाँ के आस-पास

ये इश्क़ का जुनून है इस दर्द में सुकून है
पहरा लगा है दर्द का आह-ओ-फ़ुग़ाँ के आस-पास

बस हो निगाह-ए-मुल्तफ़ित जान-ओ-जिगर बहाल हो
बैठे हैं मुल्तजी सभी महफ़िल-ए-जाँ के आस-पास

लगता है ऐ 'सदफ़' तिरे इश्क़ ने पा लिया उरूज
ठहरा हुआ है दिल तिरा सोज़-ए-निहाँ के आस-पास
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Sabiha Sadaf
यूँ ज़िंदगी को ज़ेर-ओ-ज़बर कर रहे हैं हम
हर दिन ही गर्दिशों में बसर कर रहे हैं हम

मंज़िल की है तलाश मगर ये ख़बर नहीं
काग़ज़ की कश्तियों में सफ़र कर रहे हैं हम

ऐ शब सँभल कि तेरे अँधेरों की ख़ैर हो
ख़ुद में तलाश नज्म-ओ-क़मर कर रहे हैं हम

कुछ हसरतों के क़ाफ़िले कुछ ख़्वाहिशों के घर
बस ख़्वाब ख़्वाब ही में बसर कर रहे हैं हम

ख़ुर्शेद हम को तेरी तमाज़त का डर नहीं
इक तुख़्म-ए-ना-तवाँ को शजर कर रहे हैं हम

तू रब्ब-ए-काएनात है परवरदिगार है
सज्दे तुझे ही शाम-ओ-सहर कर रहे हैं हम

हम ने तलाश-ए-इश्क़ में हारी है ज़िंदगी
अहल-ए-जुनूँ को आज ख़बर कर रहे हैं हम

है मक़्सद-ए-हयात कि मंज़िल मिले 'सदफ़'
उस की तलाश शाम-ओ-सहर कर रहे हैं हम
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Sabiha Sadaf
न कोई उलझन न दिल परेशाँ न कोई दर्द-ए-निहाँ था पहले
हमारे हाथों में तितलियाँ थीं ये दिल बहुत शादमाँ था पहले

हर एक तितली पे बार-ए-ग़म है और अंदलीबों की आँख नम है
जहाँ पे अब ख़ाक उड़ रही है यहीं कहीं गुलिस्ताँ था पहले

न बुग़्ज़ दिल में रहे न नफ़रत बस एक दूजे से हो मोहब्बत
हम आओ ता'मीर फिर से कर लें वही जो हिन्दोस्ताँ था पहले

वो मेरी चाहत की रौशनी से निकल के ज़ुल्मत में जी रहा था
यक़ीन मुझ को नहीं था लेकिन वो मुझ से कुछ बद-गुमाँ था पहले

हमारी होली है ईद है वो हर इक ख़ुशी की उमीद है वो
वो पास आए तो उस से पूछें तू इतने दिन से कहाँ था पहले

तुम्हारी दुनिया में आएँगे हम तुम्हें गले से लगाएँगे हम
जनाब हम को मिले जो फ़ुर्सत दराज़-ए-कार-ए-जहाँ से पहले

है वहशतों का ये दौर कैसा क्यों दहशतें सर उठा रही हैं
कहाँ से ले आएँ ढूँड कर हम वही जो अम्न-ओ-अमाँ था पहले
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