ये कैसे बाल खोले आए क्यूँ सूरत बनी ग़म की
तुम्हारे दुश्मनों को क्या पड़ी थी मेरे मातम की
शिकायत किस से कीजे हाए क्या उल्टा ज़माना है
बढ़ाया प्यार जब हम ने मोहब्बत यार ने कम की
जिगर में दर्द है दिल मुज़्तरिब है जान बे कल है
मुझे इस बे-ख़ुदी में भी ख़बर है अपने आलम की
नहीं मिलते न मिलिए ख़ैर कोई मर न जाएगा
ख़ुदा का शुक्र है पहले मोहब्बत आप ने कम की
अदू जिस तरह तुम को देखता है हम समझते हैं
छुपाओ लाख तुम छुपती नहीं है आँख महरम की
मज़ा इस में ही मिलता है नमक छिड़को नमक छिड़को
क़सम ले लो नहीं आदत मिरे ज़ख़्मों को मरहम की
कहाँ जाना है थम-थम कर चलो ऐसी भी किया जल्दी
तुम ही तुम हो ख़ुदा रक्खे नज़र पड़ती है आलम की
कोई ऐसा हो आईना कि जिस में तू नज़र आए
ज़माने भर का झूटा क्या हक़ीक़त साग़र-ए-जम की
घटाएँ देख कर बे-ताब है बेचैन है 'शाइर'
तिरे क़ुर्बान ओ मुतरिब सुना दे कोई मौसम की
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Agha Shayar Qazalbash
our suggestion based on Agha Shayar Qazalbash
As you were reading Miscellaneous Shayari