तिरे पास रह कर सँवर जाऊँगा मैं
जुदा हो के तुझ से बिखर जाऊँगा मैं
ज़रा सोचने दे मैं उठने से पहले
तिरे दर से उठ कर किधर जाऊँगा मैं
तिरे साथ जीने की उम्मीद लेकिन
तिरा साथ न हो तो मर जाऊँगा मैं
तिरे प्यार के साए में चंद लम्हे
ज़रा जी तो लूँ फिर गुज़र जाऊँगा मैं
सिमट कर ही रहने दे आँचल से तेरे
तू झुटलाए तो चश्म-ए-तर जाऊँगा मैं
न हरगिज़ चलूँगा किसी रहगुज़र से
तू रोके अगर तो ठहर जाऊँगा मैं
तिरे प्यार में ज़ख़्म खा खा के इक दिन
कि आग़ोश-ए-ग़म में उतर जाऊँगा मैं
'निसार' इश्क़ की आग में जल रहा हूँ
पता है कि इक दिन निखर जाऊँगा मैं
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