किये है हम ने तो ऐसे सफ़र भी
न था राहों में साया-ए-शजर भी
कटे इस तरह अपने बालों पर भी
अदा हक़ कर न पाए नोहागर भी
मुदावा कैसे होता दर्द-ए-दिल का
मिला कोई ना हमको चारागर भी
हमीं खलते है आँधी की नज़र में
हमीं तो हैं चिराग़-ए-रहगुज़र भी
मेरी मिट्टी तो कब से मुन्तज़िर है
कहाँ है जाने मेरा कूज़ा गर भी
ये रखना याद तुम शहर-ए-तलब में
भटक जाते हैं 'आसिफ़' राहबर भी
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Asif Kaifi
our suggestion based on Asif Kaifi
As you were reading Miscellaneous Shayari