वस्ल की मेरे लिए रात कभी तो होगी
आप से मेरी मुलाक़ात कभी तो होगी
हम पे मौसम की इनायात कभी तो होगी
खुश्क सहराओं में बरसात कभी तो होगी
सुबह नौ आएगी लेकर कभी खुशियों का प्याम
मुख़्तसर ग़म की सियाह रात कभी तो होगी
कब तलक तेरी बुलंदी पे रहेगी किस्मत
जीतने वाले तुझे मात कभी तो होगी
हम भी बैठे है इसी आस पे महफ़िल में तेरी
हम पे भी चश्में इनायात कभी तो होगी
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