हमारे साथ हँसते वो हसीं लगते नज़ारे हैं
हमारी झील सी आँखों में ख़्वाबों के शिकारे हैं
अभी हमसे ज़रा सी बात पर रूठे सितारे हैं
कि हम ने रौशनी में चाँद की गेसू सँवारे हैं
खुले रहते हमेशा दो बटन कुर्ते के उनके जो
हमारे हाथ से लगने की ज़िद में आज सारे हैं
इजाज़त है उन्हें ख़ुद को निहारें रात दिन इनमें
बहुत बेचैन आईने निगाहों के हमारे हैं
किसी की याद में जलते हुए वो हमसे टकराए
हमारे रेशमी आँचल से तब उलझे शरारे हैं
लिपटती जा रही ये बेल इक सूखे शजर से जो
दुबारा उस शजर के सब्ज़ होने के इशारे हैं
हमारी नम निगाहों से बुझेगी प्यास कैसे अब
समंदर से ज़ियादा तो हमारे अश्क खारे हैं
हमारे साथ खेलेंगे नहीं हारे वो गर हम से
तभी तो ऐ सखी राज़ी ख़ुशी हम दाँव हारे हैं
हमें कुछ देर ठहरा सा लगा पल इक ख़ुशी का पर
ख़ुशी ठहरे न ग़म ऐसे समय के तेज़ धारे हैं
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
हवा-ए-हिज्र ने कुछ ख़ुश्क पत्ते ही उतारे हैं
बुरे इस वक़्त ने अच्छा बहुत अच्छा किया ये सब
मुखौटे झूठ के अपनों के चेहरों से उतारे हैं
Read Full