ye zamaana mujhko tera hone to dega nahin
aur tu ye ishq gahra hone to dega nahin
di qasam tujhko bahut par kyun nahin tu sun raha
ja raha hai tu savera hone to dega nahin
ilm hai mujhko zamaane ki zamaana hai bura
ek aurat ko ye mera hone to dega nahin
phool si meri mohabbat husn ki malika hai vo
ishq uska mujhko sehra hone to dega nahin
itr si vo hai mehkati mere dil mein hi kahi
ab dupatte ka vo pahra hone to dega nahin
ये ज़माना मुझको तेरा होने तो देगा नहीं
और तू ये इश्क़ गहरा होने तो देगा नहीं
दी क़सम तुझको बहुत पर क्यूँ नहीं तू सुन रहा
जा रहा है तू सवेरा होने तो देगा नहीं
इल्म है मुझको ज़माने की ज़माना है बुरा
एक औरत को ये मेरा होने तो देगा नहीं
फूल सी मेरी मोहब्बत हुस्न की मलिका है वो
इश्क़ उसका मुझको सहरा होने तो देगा नहीं
इत्र सी वो है महकती मेरे दिल में ही कहीं
अब दुपट्टे का वो पहरा होने तो देगा नहीं
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