Aila Tahir

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@aila-tahir

Aila Tahir shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Aila Tahir's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
न अब वो पहली सी तर्ज़-ए-गिर्या न शाम-ए-ग़म की हमा-हमी है
बे-अश्क आँखों के रतजगों में ख़याल सारे बुझे हुए हैं

सुनहरी घड़ियों का लम्स था वो मिरे तकल्लुम के बाँकपन में
मगर ये आलम है अब कि अल्फ़ाज़ अब्र-ए-ग़म में घिरे हुए हैं

तुम्हारे दर को ही तकते रहना मचलते जज़्बों की शोख़ियों में
मगर अब इस चश्म-ए-ना-तवाँ में हज़ार नेज़े गड़े हुए हैं

धनक सा चेहरा उदास होना फिर उस पे भी वो शफ़क़ सा खुलना
यक़ीन मानो कि हम से नादाँ उन्ही दिनों के जिए हुए हैं

वो उस के झगड़े हमारी ख़ातिर वो सारे लोगों से बैर रखना
कहाँ है अब आ के देखे हम किन अदावतों में घिरे हुए हैं

डसे हुए हैं ये आगही के न जी रहे हैं न मर रहे हैं
न पूछो इन से सबब कोई भी ये लोग पहले डरे हुए हैं

जो जा चुके हैं वो लोग क्या थे कि उन की उल्फ़त की महकी दुनिया
जहाँ थमी थी घड़ी रुकी थी वहीं पे हम भी खड़े हुए हैं
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Aila Tahir
दिल अब उस शहर में जाने को मचलता भी नहीं
क्या ज़रूरी है ज़रूरत से अलग हो जाना

ऐन-मुमकिन है समझ तुम को न आऊँ इस साल
तुम यही करना कि उजलत से अलग हो जाना

ये कहीं छीन न ले सब्र की दौलत तुम से
दिल धुआँ करती क़यामत से अलग हो जाना

वो तुम्हें भूल के पागल भी तो हो सकता है
देख कर वक़्त सुहूलत से अलग हो जाना

मेरी तक़दीर में बस एक ही दुख उतरा है
दिल का उस यार की संगत से अलग हो जाना

तेरा ग़म ही तो उड़ाए लिए फिरता है मुझे
चाहे कौन ऐसी अज़िय्यत से अलग हो जाना

अध-खिले फूल से रखना न कभी रब्त कोई
अध-बुझे रंग की हालत से अलग हो जाना

हम तो जाँ हार चले हैं प तुम ऐ निकहत-ए-गुल
चश्म-ए-क़ातिल की मशिय्यत से अलग हो जाना
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Aila Tahir
ये किस के नक़्श आइने में उभरे ये कौन राहत है झिलमिलाई
कि उस का जादू जुनूँ में घुलते हुओं को बेहाल कर गया है

हमारे हिस्से में लाओ दे दो तमाम वहशत वो सब अज़िय्यत
तुम्हारे हाथों में जो थमा कर कोई न जाने किधर गया है

तुम्हें किसी ज़ख़्म की ख़बर तक न देंगे हम कि अज़ीज़-ए-जाँ हो
न ये बताएँगे सुख का दरिया तबाह कर के उतर गया है

हमारी हालत का क्या ठिकाना कि दिल से बढ़ कर था ग़म तुम्हारा
मगर ऐ महताब हुस्न तेरा बता कि कैसे बिखर गया है

शुमार तारों का मत करो तुम गिनो नहीं अब ये बहते आँसू
जो दर्द था अब वो मिट चुका है जो ज़ख़्म था अब वो भर गया है

वो एक हसरत जो दिल के अंदर ख़ुदा बनी थी नहीं रही है
वो सब्र था जो ग़ुरूर-ए-हस्ती क़सम ख़ुदा की वो मर गया है
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Aila Tahir