Jafar Abbas

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@jafar-abbas

Jafar Abbas shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jafar Abbas's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
अभी तो महव-ए-तजल्ली हैं सब दुकानों पर
पलट के देखिए आते हैं कब मकानों पर

ख़याल-ए-ख़ाम में गुज़री है ज़िंदगी सारी
हक़ीक़तों का गुमाँ है अभी फ़सानों पर

क़दम क़दम पे तज़ादों से साबिक़ा है जहाँ
यक़ीन कैसे करे कोई इन गुमानों पर

वो जिस की चाह में मर मर के जी रहे हैं यहाँ
न जाने कौन सी बस्ती है आसमानों पर

जहाँ भी तीर लगा बस वही हदफ़ ठहरा
है फिर भी ज़ो'म बहुत उन को इन कमानों पर

मैं उन की बात को किस तौर मो'तबर जानूँ
मदार-ए-ज़ीस्त ही जिन का है कुछ बहानों पर

कड़ी है धूप झुलसती हैं अब दलीलें सभी
यक़ीं है फिर भी उन्हें कितना साएबानों पर

नज़र में ज़ेहन में दिल में कुशादगी लाओ
हवा के रुख़ का तक़ाज़ा है बादबानों पर

न जाने कितनी ही सदियाँ लगेंगी और अभी
दिलों की बात जब आ पाएगी ज़बानों पर

अजीब उन को सलीक़ा है खुल के जीने का
नई है कौन सी तोहमत ये हम दिवानों पर

हमारी ज़ात से आबाद कुछ ख़राबे हैं
है अपने दम से उजाला कई मक़ामों पर

ख़िरद-नवाज़ जुनूँ और जुनूँ-नवाज़ ख़िरद
हैं अब भी नूर तरीक़े ये कुछ ठिकानों पर

उसे जगाओ डसे तुम को मार डाले तुम्हें
तुम्हारी ज़ात में बैठा है जो ख़ज़ानों पर
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Jafar Abbas
हम ने तो सोचा भी नहीं था ऐसा दिन भी आएगा
अपनों का यूँ रुख़ बदलेगा सब से जी भर जाएगा

दिल में जो है सब कह डालो वक़्त बहुत कम बाक़ी है
कौन यहाँ है दोस्त तुम्हारा जो दुश्मन हो जाएगा

कैसे कैसे प्यारे साथी कैसी कैसी बातें थीं
किस को क्या मा'लूम था यारो कौन कहाँ छुट जाएगा

प्यार के बदले नफ़रत पाई नफ़रत भी इतनी गहरी
ऐसा क्यूँ है क्यूँ है ऐसा कोई समझ न पाएगा

मत पूछो हम को अपनों ने कैसे कैसे ज़ख़्म दिए
गर ये क़िस्सा छेड़ दिया तो सब का जी भर आएगा

आँखों में अब अश्क नहीं हैं सीने में अब आह नहीं
उस की बात करो मत मुझ से दर्द बहुत बढ़ जाएगा

अपना भी इक यार था ऐसा जिस से कुछ कह लेते थे
अब जो दिल का बोझ बढ़ेगा किस के दर पर जाएगा

प्यार मोहब्बत लाग लगाओ के बारे में मत सोचो
रहा-सहा जो भरम बचा है यूँ वो भी उठ जाएगा

घर से बे-घर हो कर हम तो मारे मारे फिरते हैं
ये बंजारा दिल देखो अब हम को किधर ले जाएगा

हम ने तो अपनी कह डाली तुम भी तो कुछ अपनी कहो
दिल की बात करो कुछ यारो दिल हल्का हो जाएगा
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Jafar Abbas
इक इक कर के हो गए रुख़्सत अब कोई अरमान नहीं
दिल में गहरा सन्नाटा है अब कोई मेहमान नहीं

तुम ने भी सुन रक्खा होगा हम भी सुनते आए हैं
जिस के दिल में दर्द न हो वो पत्थर है इंसान नहीं

दर्द कड़ा हो तो भी अक्सर पत्थर बन जाते हैं लोग
मरने की उम्मीद नहीं है जीने का सामान नहीं

कुछ मत बोलो चुप हो जाओ बातों में क्या रक्खा है
क्यूँ करते हो ऐसी बातें जिन बातों में जान नहीं

औरों जैसी बातें मुझ को भी करनी पड़ती हैं रोज़
ये तो मेरी मजबूरी है ये मेरी पहचान नहीं

मेरी बातें सीधी सच्ची उन में कोई पेच नहीं
इन को 'मीर' की ग़ज़लें जानो 'ग़ालिब' का दीवान नहीं

दिल को बहलाने की ख़ातिर हम भी क्या क्या करते हैं
ख़ूब समझता है वो भी सब ऐसा भी नादान नहीं

रात गए अक्सर यूँ ही क्यूँ फूट फूट कर रोते हो
ख़ाक तले सोने वालों से मिलने का इम्कान नहीं

वो था मेरे दुख का साथी और तुम्हें क्या बतलाएँ
उस का मेरा जो रिश्ता था उस रिश्ते का नाम नहीं

वो होता तो फिर भी शायद दर्द पे कुछ क़ाबू रहता
तन्हाई से तन्हा लड़ना कुछ ऐसा आसान नहीं
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Jafar Abbas
अजीब बात थी हर शे'र पुर-असर ठहरा
मैं इस की बज़्म में कल रात बा-हुनर ठहरा

हुआ जो आ के वो मेहमान बा'द मुद्दत के
लहूँ में रक़्स हुआ बाम पर क़मर ठहरा

मुमानअ'त का तक़ाज़ा था जिस से दूर रहें
चमन में वो ही शजर सब से बा-समर ठहरा

जुनूँ की भीक कहीं भी न मिल सकी उस को
गदा-ए-होश यहाँ गरचे दर-ब-दर ठहरा

अजीब रक़्स था बिस्मिल का हर तमाशाई
तड़प के दर्द से यकसर ही बे-ख़बर ठहरा

अक़ीदतों के धुँदलकों में और क्या होता
हर एक फ़िक़रा यहाँ उस का मो'तबर ठहरा

मुझे न क़त्ल करें बस पयाम लाया हूँ
मिरी हक़ीक़त ही क्या मैं तो नामा-बर ठहरा

सफ़ीना गरचे किनारे पे जा लगा लेकिन
सवाल ये है इधर ठहरा या उधर ठहरा

न जाने कितनी ही सम्तें बुला रही हैं मुझे
हर इक क़दम पे है मुझ को नया सफ़र ठहरा

न देख पाया कोई आँख-भर के आईना
ख़ुद अपना चेहरा यहाँ बाइ'स-ए-मफ़र ठहरा

ठहर के जिस ने भी कुछ देर ख़ुद को देख लिया
वो अपनी वहशत-ए-बे-जा का चारागर ठहरा

है जाने कितने ही पर्दों में महव-ए-आराइश
झलक भी देख ली जिस ने वो दीदा-वर ठहरा

हर एक शय से मोहब्बत है बस इलाज यहाँ
बस एक नुस्ख़ा यही है जो कारगर ठहरा

शुरूअ' हुआ था अभी और क़रीब ख़त्म है अब
ये ज़िंदगी का सफ़र कितना मुख़्तसर ठहरा
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Jafar Abbas
वाह क्या दौर है क्या लोग हैं क्या होता है
ये भी मत कह कि जो कहिए तो गिला होता है

क्या बताएँ तुम्हें अब क्या नहीं होता है यहाँ
बस ये जानो कि जो होता है बुरा होता है

दे के दुख औरों को वो कौन सा सुख पाएगा
ऐसी बातों से भला किस का भला होता है

अब वो दिन दूर नहीं देखना तुम भी यारो
अम्न के नाम पे क्या फ़ित्ना बपा होता है

फिर सफ़-आरा हुईं फ़ौजें लब-ए-दरिया-ए-फ़ुरात
हम को मा'लूम है इस जंग में क्या होता है

आज फिर दिल में उठा है वही देरीना सवाल
ऐसे मज़लूमों का क्या कोई ख़ुदा होता है

इक ज़रा हाल तो देखो मिरा ऐ दोस्त मिरे
तुम ही सोचो कोई ऐसे में ख़फ़ा होता है

यूँ तो हर रात ही रहती है अजब बेचैनी
आज कुछ दर्द मिरे दिल में सिवा होता है
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Jafar Abbas