पहले बहुतों की आंखों से उतरा हूं मैं
बाद कही तेरे चश्मों में ठहरा हूं मैं
इक बस तुमको ही अपना सा लगता हूँ मैं
औरों के लिए एक पराया चहरा हूं मैं
तुम सबसे सुन्दर गुल हो मेरे बाग का सो
करने को हिफ़ाज़त ही बना इक पहरा हूं मैं
एक तुम्हारे दर तक आने की ख़ातिर ही
गलिया गलिया रस्ता रस्ता भटका हूं मैं
तुम से मिल कर शायद मैं मुकम्मल हो जाऊं
सो ख़्वाबों में भी तेरे संग रहता हूं मैं
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