मेरे दिल को कोई जा कर के ढूँढे़ इन पहाड़ों में
छिपा बैठा है अपनी आँखें मूंदे इन पहाड़ों में
यहाँ अलसाया सूरज रोज़ इनकी गोद से निकले
चमकती चादरों को रातें ओढ़े इन पहाड़ों में
यहाँ की सुब्ह-ओ-शामें भी तो हर्फ़-ए-राज़ लिखती हैं
शजर, झरने, परिंदे मिल के गाते इन पहाड़ों में
वो हल्की धुंध में जब वादियाँ दिलकश सी लगती हैं
तो बूंदें ओस की नजरें उतारे इन पहाड़ों में
यहाँ के पत्थरों में एक कोमल दिल धड़कता है
ये देखो साँस लेते हैं नज़ारे इन पहाड़ों में
ये बादल और जुगनू जब तर्रन्नुम गुनगुनाते हैं
तभी लिखती हूँ मैं गीतों के मुखड़े इन पहाड़ों में
ये ईंटों का नगर मुर्दा है मुर्दा लोग हैं सारे
तभी तो 'रूह' रह-रह कर के लौटे इन पहाड़ों में
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