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कहीं भी कोई खड़ा मस'अला नहीं होता - Mohammad Aquib Khan

कहीं भी कोई खड़ा मस'अला नहीं होता
तुम्हारे नाम का जो तज़किरा नहीं होता

अगर मैं जॉन को पहले ज़रा सा पढ़ लेता
तो मेरे साथ में फिर हादसा नहीं होता

भले ज़हीन हो, मज़बूत हो बहुत लेकिन
कभी भी बाप से बेटा बड़ा नहीं होता

इधर मैं ज़िन्दगी को तुम पे हारे बैठा हूँ
उधर में तुमसे बस इक फैसला नहीं होता

अगर वो जानता सययाद की खुराक है वो
तो फिर परिंदा कफ़स से रिहा नहीं होता

तुम्हारे बाद तो ऐसा शजर बना है दिल
किसी भी मौसमों में जो हरा नहीं होता

ये जानते थे मुहब्बत का बुरा है अंजाम
किसी के साथ पर इतना बुरा नहीं होता

भरम सभी के फकत जलजलों नें तोड़ दिये
जो कह रहे थे के कोई ख़ुदा नहीं होता

कुछ एक पेड़ों के साँपो से भी मरासिम हैं
हर एक पेड़ में तो घोंसला नहीं होता

- Mohammad Aquib Khan

Hadsa Shayari

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