0

ज़िंदगी से पास लेकिन हुस्न के क़िस्से से दूर  - Akhtar Hashmi

ज़िंदगी से पास लेकिन हुस्न के क़िस्से से दूर
हम ग़ज़ल रखते हैं अपनी ज़ुल्फ़ के साए से दूर

हम से जिन को उन्सियत है वो खिंचे आ जाएँगे
उन को क्या नज़दीक लाएँ जो हैं ख़ुद पहले से दूर

जाने कैसे कर्ब उभरे मेरे चेहरे पर कि जो
वो निगाहें अपनी रखते हैं मिरे चेहरे से दूर

एक लम्हा प्यार का जिस को मिले वो सुर्ख़-रू
क्यूँ मुझे रक्खा गया फिर इक इसी लम्हे से दूर

ज़ब्त करना कितना मुश्किल था मुझे मालूम है
ज़िंदगी को फिर भी रक्खा मैं ने हर फ़ित्ने से दूर

ज़ुल्म कर के तू अदालत से अगर बच भी गया
सोच भागेगा कहाँ तक आसमाँ वाले से दूर

आख़िरश अश्कों के चलते ही दुआ पूरी हुई
तुम ने अख़्तर जिन को रक्खा आज तक अपने से दूर

- Akhtar Hashmi

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Akhtar Hashmi

As you were reading Shayari by Akhtar Hashmi

Similar Writers

our suggestion based on Akhtar Hashmi

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari