कहाँ हम ग़ज़ल का हुनर जानते है
मगर इस ज़बाँ का असर जानते है
ये वो हुस्न जिसको निखारा गया है
नया कुछ नही हम ख़बर जानते है
कि है जो कफ़स में वो पंछी रिहा हो
परिंदे ज़मीं के शजर जानते है
फक़त रूह के नाम है इश्क लेकिन
बदन के हवाले से घर जानते है
फलाँ है फलाँ का यकीं है मुझे भी
सुनो हम उसे सर-ब-सर जानते है
के अब यूं सिखाओ न रस्मे सियासत
झुकाना कहाँ है , ये सर जानते है
~नीरज 'नीर'
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