Ameer Ahmad Khusro

Ameer Ahmad Khusro

@ameer-ahmad-khusro

Ameer Ahmad Khusro shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ameer Ahmad Khusro's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
इस तरह दिल में तिरी याद के पैकर आए
जैसे उजड़ी हुई बस्ती में पयम्बर आए

ज़ात के ग़म थे कि हालात के जलते साए
बढ़ते बढ़ते जो मिरे क़द के बराबर आए

ओढ़ ली मैं ने तिरी याद की चादर ऐ दोस्त
जब भी सर पर मिरे हालात के पत्थर आए

कभी ऐसा भी हो दिल में ये ख़याल आता है
ज़ख़्म औरों के लगे आँख मिरी भर आए

जिन को इख़्लास का दा'वा था वही दोस्त मिरे
आस्तीनों में छुपाए हुए ख़ंजर आए

अपनी आँखों में सवालात की बौछार लिए
कितने चेहरे मिरे माज़ी से निकल कर आए

क्या बताऊँ कि दर-ए-ज़ेहन से शहर-ए-दिल तक
कितने बीते हुए लम्हात के लश्कर आए

मुस्कुराऊँ मैं हालात का मुजरिम कहलाऊँ
रोऊँ तो शिकवों का इल्ज़ाम मिरे सर आए

हक़ की राहों में क़दम जब भी बढ़े हैं 'ख़ुसरव'
राह दिखलाने मुझे राह के पत्थर आए
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Ameer Ahmad Khusro
रौशनी ले के कहीं चाँद कहीं तारों से
हम भी गुज़रे थे कभी वक़्त के बाज़ारों से

ज़िंदगी तुझ से तिरे ग़म से तो इंकार नहीं
हाँ मगर लज़्ज़त-ए-ग़म छिन गई ग़म-ख़्वारों से

अज़्मत-ए-रफ़्ता की मिटती हुई तस्वीर हैं हम
हम को लटकाइए गिरती हुई दीवारों से

इस से पहले कि छिड़े ज़िक्र-ए-वफ़ा प्यार की बात
मशवरा कर लो ज़रा वक़्त की सरकारों से

चाँद जिस वक़्त उतर आता है पैमानों में
मय-कदे बात किया करते हैं मय-ख़्वारों से

हम को बे-दाम भी बिक जाने का फ़न आता है
बात कहने की नहीं है ये ख़रीदारों से

वही तन्हाई की बातें हैं वही ज़ात के ग़म
मुझ को शिकवा है मिरे दूर के फ़नकारों से

अब्र-ए-रहमत को लिए अपनी नज़र में 'ख़ुसरव'
हम भी तो दश्त से गुज़रे कभी कोहसारों से
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Ameer Ahmad Khusro
ढलते हुए सूरज की ज़िया देख रहे हैं
सदियों से भी अंजाम-ए-वफ़ा देख रहे हैं

बदली हुई गुलशन की हवा देख रहे हैं
फूलों में भी काँटों की अदा देख रहे हैं

राहों में भटक जाते हैं किस तरह मुसाफ़िर
मंज़िल पे खड़े राह-नुमा देख रहे हैं

तारीख़ के चेहरे से नए दौर के हाथों
मिटती हुई तहरीर-ए-वफ़ा देख रहे हैं

लगता है कि बस्ती में कोई बात हुई है
हर शख़्स को मसरूफ़-ए-दुआ देख रहे हैं

अच्छा है बरस जाए अगर दिल की ज़बाँ पर
हम दोश पे ज़ुल्फ़ों की घटा देख रहे हैं

गलियों में मदीने की अभी देखने वाले
सरकार के नक़्श-ए-कफ़-ए-पा देख रहे हैं

एहसास के टूटे हुए आईने में 'ख़ुसरव'
जलती हुई हम अपनी चिता देख रहे हैं
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