Daud Aurangabadi

Daud Aurangabadi

@daud-aurangabadi

Daud Aurangabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Daud Aurangabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे
तन कूँ आराम-ओ-सुख सूँ बाज़ करे

हुए तब राग-ए-इश्क़ सूँ आगाह
रग-ए-जाँ जब कि तार-ए-साज़ करे

इस सुख़न का अजब है अफ़्साना
जो सुने उस कूँ अहल-ए-राज़ करे

सैद करने के तईं कबूतर-ए-इश्क़
ताइर-ए-दिल मिसाल-ए-बाज़ करे

हर्फ़-ए-हक़ पर अगर है दिल साबित
मिस्ल-ए-मंसूर सर नियाज़ करे

आशिक़ाँ कूँ नियाज़ है लाज़िम
नाज़नीं गर अदा सूँ नाज़ करे

शोला-ए-इश्क़ उस पे हुए रौशन
शम्अ साँ दिल कूँ जो गुदाज़ करे

पहुँचने इल्म कूँ हक़ीक़त के
सैर अज़ नुस्ख़ा-ए-मजाज़ करे

कोई उस सर्व-क़द कूँ जा बोलो
दर्स दिखला के सरफ़राज़ करे

खोल कर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं यक-बार
रिश्ता-ए-शौक़ कूँ दराज़ करे

जो पढ़े तेरे शेर कूँ 'दाऊद'
आख़िरश दिल कूँ इश्क़-बाज़ करे
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तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ
देख कर ज़ंजीर तेरे ज़ुल्फ़ की दीवाना हूँ

गाह सैर-ए-बोस्ताँ करता हूँ गाहे सैर-ए-बज़्म
गाह तेरे इश्क़ में बुलबुल हूँ गह परवाना हूँ

गाह मिस्ल-ए-बरहमन हूँ ऐ सनम ज़ुन्नार-बंद
हात में ज़ाहिद के गाहे सुब्हा-ए-सद-दाना हूँ

किया हुआ गर है दिल-ए-सद-चाक मेरा तीरा-बख़्त
हुस्न की ज़ीनत हूँ तेरे सुर्मा हूँ गर शाना हूँ

जब सूँ है उस आश्ना की आश्नाई का ख़याल
नीं रहा हूँ आप में, मैं आप सूँ बेगाना हूँ

गोश रख मेरा सुख़न सुनता है हर अहल-ए-सुख़न
जब सूँ मैं बहर-ए-सुख़न की सीप का दुर्दाना हूँ

है अज़ल सूँ जल्वा-पैरा दिल में हुब्ब-ए-मुर्तज़ा
इस सबब 'दाऊद' दाएम दुश्मन-ए-बुत-ख़ाना हूँ
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मुझ साथ सैर-ए-बाग़ कूँ ऐ नौ-बहार चल
बुलबुल है इंतिज़ार में ऐ गुल-इज़ार चल

करने कूँ क़त्ल आशिक़-ए-जाँ-बाज़ के सनम
ले तेग़-ए-नाज़ हाथ कमर रख कटार चल

करने नज़ारा बाग़ का निकला है गुल-बदन
बरजा है हर चमन सूँ गर आवे बहार चल

उस गुल-बदन सूँ ज़ौक़ हम-आग़ोश है अगर
हो चाक सीना गुल के नमन बन के हार चल

उस शम्अ-रू के वस्ल का गर तुझ कूँ शौक़ है
महफ़िल में आशिक़ाँ की हो परवाना-वार चल

आख़िर असीर-ए-उम्र का है इस जहाँ सूँ कूच
इस वास्ते है दम की जरस में पुकार चल

गर अज़्म है बुज़ुर्गी इस आलम में हुए हुसूल
आमाल-नामा जग में अपस का सँवार चल

गर यार के है वस्ल की नेमत की इश्तिहा
हर शय सूँ रह ऊ पास वहाँ लग नहार चल

अव्वल ख़ुदी के घर कूँ ऐ 'दाऊद' तोड़ सट
मय-ख़ाना-ए-विसाल में तब सिध-बिसार चल
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