कहते हो तुमने रूह देखीं जिस्म का ख़ाका नहीं देखा
क्या देखा फिर देखा जो आँखों में सहरा नहीं देखा
हिज्र में हो मिली क़ुर्बत जिनको आशिक़ सच्चे होते है
वस्ल को हो पागल जो हो वो आशिक़ सच्चा नहीं देखा
पक्के घर में रहने वालों के दिल कच्चे देखे है
घर कच्चे में रहने वालों का दिल कच्चा नहीं देखा
धागा टूटते देखा है देखा है जुड़ते बार कई
पर जुड़ने के बाद कभी वो धागा सीधा नहीं देखा
माँ मेरी को मैंने अपने सामने जाता देखा है
औ तुम कहते हो के मैंने जाता अपना नहीं देखा
देखा है खुली आँखों से इक सपना तुमसे मिलने का
नींद में आयें सपने को तो होते पूरा नहीं देखा
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