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कहते हो तुमने रूह देखीं जिस्म का ख़ाका नहीं देखा  - Anish Gumber

कहते हो तुमने रूह देखीं जिस्म का ख़ाका नहीं देखा
क्या देखा फिर देखा जो आँखों में सहरा नहीं देखा

हिज्र में हो मिली क़ुर्बत जिनको आशिक़ सच्चे होते है
वस्ल को हो पागल जो हो वो आशिक़ सच्चा नहीं देखा

पक्के घर में रहने वालों के दिल कच्चे देखे है
घर कच्चे में रहने वालों का दिल कच्चा नहीं देखा

धागा टूटते देखा है देखा है जुड़ते बार कई
पर जुड़ने के बाद कभी वो धागा सीधा नहीं देखा

माँ मेरी को मैंने अपने सामने जाता देखा है
औ तुम कहते हो के मैंने जाता अपना नहीं देखा

देखा है खुली आँखों से इक सपना तुमसे मिलने का
नींद में आयें सपने को तो होते पूरा नहीं देखा

- Anish Gumber

Hijr Shayari

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