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बुलंद हौसले थे और जाँ फिशानी थी - Mohammad Aquib Khan

बुलंद हौसले थे और जाँ फिशानी थी
बहुत हसीन हमारी कभी जवानी थी

वो एक दौर था ज़ब उड़ने वाले घोड़े थे
वो रोज़ रात को परियों की इक कहानी थी

इसी लिए भी मरासिम नहीं बढे उससे
बहुत हसीन थी वो और खानदानी थी

नया है दौर मगर लोग तो नहीं बदले
वही हमारी है जो 'कैस' की कहानी थी

वो जिस ग़ज़ल पे मिरे होंठ काँपते हैं अब
कभी ग़ज़ल वो हमें याद बाज़ुबानी थी

तुम्हारे बाद तुम्हारी वो दिलपसंद फ़िलम
किसे दिखा रहे हैं और किसे दिखानी थी

बड़ों से गुफ्तुगू का आज जो तरीका है
हमारे दौर में बूढ़ो से बदज़बानी थी

जो एक शख्स गया है न छोड़ कर मुझको
उसी के साथ हमें ज़िन्दगी बितानी थी

- Mohammad Aquib Khan

Jawani Shayari

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