0

उजालों की नुमाइश हो रही है  - Akhtar Ali Akhtar

उजालों की नुमाइश हो रही है
अँधेरों से भी साज़िश हो रही है

कोई मुंसिफ़ नहीं शायद मयस्सर
सितमगर से जो नालिश हो रही है

वो माने या न माने उस की मर्ज़ी
मनाने की तो काविश हो रही है

सितमगर से कोई पूछे तो इतना
ये मुझ पर क्यों नवाज़िश हो रही है

अदब की रोक कर ता'मीर ख़ुद ही
तरक़्क़ी की गुज़ारिश हो रही है

हैं चर्चे इल्म के हर इक ज़बाँ पर
मगर कमज़ोर दानिश हो रही है

नहीं इख़्लास-ए-निय्यत और 'अख़्तर'
इबादत की नुमाइश हो रही है

- Akhtar Ali Akhtar

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Akhtar Ali Akhtar

As you were reading Shayari by Akhtar Ali Akhtar

Similar Writers

our suggestion based on Akhtar Ali Akhtar

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari