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रहबर-ए-तब्ल-ओ-निशाँ और ज़रा तेज़ क़दम  - Akhtar Ansari Akbarabadi

रहबर-ए-तब्ल-ओ-निशाँ और ज़रा तेज़ क़दम
हाँ मिरे अज़्म-ए-जवाँ और ज़रा तेज़ क़दम

इस अँधेरे से न घबरा कि ज़रा और आगे
है चराग़ाँ का समाँ और ज़रा तेज़ क़दम

कहीं मायूस न होना जो निगाहों से अभी
उन की महफ़िल है निहाँ और ज़रा तेज़ क़दम

ये यक़ीं है कि पहुँच जाएँगे उन तक इक दिन
चलिए बे-वहम-ओ-गुमाँ और ज़रा तेज़ क़दम

बुझ न जाएँ रह-ए-हस्ती में तमन्ना के चराग़
ख़्वाजा-ए-राह-रवाँ और ज़रा तेज़ क़दम

किस बुलंदी पे रवाँ तुम हो ज़मीं के ज़र्रो
हैं सितारे निगराँ और ज़रा तेज़ क़दम

मिल ही जाएगा कहीं शहर-ए-निगाराँ 'अख़्तर'
ऐ परस्तार-ए-बुताँ और ज़रा तेज़ क़दम

- Akhtar Ansari Akbarabadi

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