Akhtar Ansari Akbarabadi

Akhtar Ansari Akbarabadi

@akhtar-ansari-akbarabadi

Akhtar Ansari Akbarabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhtar Ansari Akbarabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

25

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
न राज़-ए-इब्तिदा समझो न राज़-ए-इंतिहा समझो
नज़र वालों तुम्हें करना है अब दुनिया में क्या समझो

तलब में सिद्क़ है तो एक दिन मंज़िल पे पहुँचोगे
क़दम आगे बढ़ाओ ख़ुद को अपना रहनुमा समझो

ये क्या अंदाज़ है इतना गुरेज़ अहल-ए-तमन्ना से
ख़ुदा तौफ़ीक़ दे तो अहल-ए-दिल का मुद्दआ समझो

तुम्हारे हर इशारे पर सर-ए-तस्लीम ख़म लेकिन
गुज़ारिश है कि जज़्बात-ए-मोहब्बत को ज़रा समझो

हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका
जो पहुँचा दे लब-ए-साहिल उसी को नाख़ुदा समझो

जिसे देखो वही बदमस्त ही मग़रूर है हमदम
कोई बंदा नहीं दुनिया में किस किस को ख़ुदा समझो

यहाँ रहबर के पर्दे में बहुत रहज़न हैं ऐ 'अख़्तर'
रहो दूर उस से तुम जिस को वफ़ा ना-आश्ना समझो
Read Full
Akhtar Ansari Akbarabadi
ज़िंदगी होगी मिरी ऐ ग़म-ए-दौराँ इक रोज़
मैं सँवारूंगा तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ इक रोज़

गुल खिलाएगी नई मौज-ए-बहाराँ इक रोज़
टूट ही जाएँगे क़ुफ़्ल-ए-दर-ए-ज़िन्दाँ इक रोज़

कितने उलझे हुए हालात-ए-ज़माना हैं अभी
होंगे शाने पे मिरे गेसू-ए-जानाँ इक रोज़

अहल-ए-ज़िंदाँ से ये कह दो कि ज़रा सब्र करें
होगा हर सम्त गुलिस्ताँ ही गुलिस्ताँ इक रोज़

आ के इक रोज़ जलाऊँगा मुरादों के दिए
तेरी महफ़िल में करूँगा मैं चराग़ाँ इक रोज़

जान देता हूँ अभी इश्क़ के अंदाज़ पे मैं
हुस्न होगा मिरे पहलू में ग़ज़ल-ख़्वाँ इक रोज़

कुछ अँधेरे हैं अभी राह में हाइल 'अख़्तर'
अपनी मंज़िल पे नज़र आएगा इंसाँ इक रोज़
Read Full
Akhtar Ansari Akbarabadi
नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए
क़लम से क्या हिकायात-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ लिखिए

मिटा दे जो फ़ज़ा की तीरगी माहौल की पस्ती
कोई ऐसा भी शे'र ऐ शाइ'रान-ए-ख़ुश-बयाँ लिखिए

बपा हैं हर जिहत में आतिश-ओ-आहन के हंगामे
कहाँ इस दौर में जौर-ओ-जफ़ा-ए-महवशाँ लिखिए

ख़तर-हा-ए-रह-ए-मजनूँ का क़िस्सा क्यूँ बयाँ कीजिए
नज़र को नाक़ा-ए-लैला ख़िरद को सारबाँ लिखिए

यही हैं यादगार-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल इस ज़माने में
इन्हीं सूखे हुए काँटों से ज़िक्र-ए-गुल्सिताँ लिखिए

बयाँ करने को है तर्ज़-ए-तपाक-ए-दोस्ताँ काफ़ी
अब इस दुनिया में क्या रंग-ए-ग़ुरूर-ए-दुश्मनाँ लिखिए

रिवायात-ए-कुहन में दिलकशी बाक़ी नहीं 'अख़्तर'
नए अंदाज़ से तारीख़-ए-शहर-ए-गुल-रुख़ाँ लिखिए
Read Full
Akhtar Ansari Akbarabadi
ज़ुल्म सहते रहे शुक्र करते रहे आई लब तक न ये दास्ताँ आज तक
मुझ को हैरत रही अंजुमन में तिरी क्यूँ हैं ख़ामोश अहल-ए-ज़बाँ आज तक

इश्क़ महव-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी हो गया हुस्न मदहोश-ए-इशवा-तराज़ी रहा
अहल-ए-दिल होश में आ चुके हैं मगर है वही आलम-ए-दिलबराँ आज तक

ऐसे गुज़रे हैं अहल-ए-नज़र राह से जिन के क़दमों से ज़र्रे मुनव्वर हुए
और ऐसे मुनव्वर जिन्हें देख कर रश्क करती रही कहकशाँ आज तक

कारवानों के रहबर ने राहज़न फिर भी मंज़िल पे कुछ राह-रौ आ गए
वो नए कारवानों के रहबर बने जिन से है अज़्मत-ए-रहबराँ आज तक

मुश्किलें आफ़तें हादसे सानेहे आए 'अख़्तर' मिरी राह में किस क़दर
मुझ को आगे बढ़ाता रहा है मगर मेरा दिल मेरा अज़्म-ए-जवाँ आज तक
Read Full
Akhtar Ansari Akbarabadi

LOAD MORE