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नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए  - Akhtar Ansari Akbarabadi

नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए
क़लम से क्या हिकायात-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ लिखिए

मिटा दे जो फ़ज़ा की तीरगी माहौल की पस्ती
कोई ऐसा भी शे'र ऐ शाइ'रान-ए-ख़ुश-बयाँ लिखिए

बपा हैं हर जिहत में आतिश-ओ-आहन के हंगामे
कहाँ इस दौर में जौर-ओ-जफ़ा-ए-महवशाँ लिखिए

ख़तर-हा-ए-रह-ए-मजनूँ का क़िस्सा क्यूँ बयाँ कीजिए
नज़र को नाक़ा-ए-लैला ख़िरद को सारबाँ लिखिए

यही हैं यादगार-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल इस ज़माने में
इन्हीं सूखे हुए काँटों से ज़िक्र-ए-गुल्सिताँ लिखिए

बयाँ करने को है तर्ज़-ए-तपाक-ए-दोस्ताँ काफ़ी
अब इस दुनिया में क्या रंग-ए-ग़ुरूर-ए-दुश्मनाँ लिखिए

रिवायात-ए-कुहन में दिलकशी बाक़ी नहीं 'अख़्तर'
नए अंदाज़ से तारीख़-ए-शहर-ए-गुल-रुख़ाँ लिखिए

- Akhtar Ansari Akbarabadi

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