प्यार फिर झूठा जताने लौट कर वापस न आ अब
याद यूँ मुझको न कर तू यूँ न तू मुझको सता अब
दे न यूँ मुझको सज़ा जुर्म-ए-वफ़ा की बे-वफ़ा तू
ये फ़रेब-ए-दम दिखाकर और मत दिल को दुखा अब
जाहिलों ने इस-क़दर भटका दिया है ज़ाहिदों को
हर तरफ़ बर्बादियाँ हैं गर करे भी दिल तो क्या अब
बह गए जज़्बात सारे साथ मेरे आँसुओं के
कुछ बचा मुझमें कहाँ जो कर सकूँ तुझपे फ़ना अब
थी शिकायत ये ख़ुदा बस चार दिन की ज़िन्दगी दी
संग जो कुछ पल बिताएँ है नहीं ये भी गिला अब
पूछना मुझसे न कोई है किधर मेरा ठिकाना
खो गया हूँ मैं कहाँ ख़ुद है नहीं मुझको पता अब
माँ को दुख है क्यूँ महीनों बात मैं करता नहीं हूँ
है बना मुझको दिया इस इश्क़ ने कितना बुरा अब
है क़सम 'रेहान' उसकी जिसकी ख़ातिर लिखते हो तुम
गर कभी मिल जाए वो मुड़ के न उसको देखना अब
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