फ़लक और भी हैं ज़मीं और भी हैं
ख़ुदा की हसीं जाँ नशीं और भी हैं
मेरे ही लिए क्यों लिखो शायरी तुम
जहाँ में कई आफ़रीं और भी हैं
नहीं कोई शर्तें हैं मेरी वफ़ा की
तू कर दिल्लगी, दिलनशीं और भी हैं
मुझे रश्क़ क्यों है कहानी पे अपने
मोहब्बत के क़िस्से हसीं और भी हैं
ये सूरज ये तारे ये चाँद और दुनिया
यहाँ हैं मगर क्या कहीं और भी हैं?
'अनन्या" अभी साँप निकले नहीं सब
अभी बाक़ी कुछ आस्तीं और भी हैं
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