तिरा तो यार है जो मुझ को खाता है
तिरा तो ध्यान ही मुझको रुलाता है
तू कह तो छोड़ दू दो पल अकेला ही
जो ढलती शाम है उसको उगाता है
तू नखरें कर बहाने तो बनाता है
न जाने दिल तुझे क्यों झेल जाता है
हाँ देखा हुस्न वालों को तुने भी है
तिरा बेचैन ही हरदम सताता है
तू सुनते सुन तो मेरा भी तो सुनता था
तो अब हर बार तू ही तू सुनाता है
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