मैं आज तक सोचता यही हूँ तेरा कभी मैं हो क्यों न पाया
नहीं वफ़ा या नहीं मुहब्बत थी क्या कमी कुछ समझ न आया
वही थी बातें नहीं कही जो वही जो कहनी कभी नहीं थी
मैं चुप था अपना समझ के उसको उसे मैं लगता रहा पराया
मैं रोज़ बाज़ार बिकने जाता कोई न क़ीमत मेरी लगाता
इन्हीं बदौलत हुआ ये सौदा गँवा के ख़ुद को ख़ुदी को पाया
मुझे नहीं तेरी जुस्तुजू अब नहीं रही कोई आरज़ू अब
मिरी बला से मरो या जी लो लो हाथ वापस तुम्हें थमाया
सुकूँ नहीं था न चैन सुख था, थे सब अकेले न कोई ख़ुश था
सभी को कोई न कोई दुख था, बुलंदियों पे मज़ा न आया
वो जिन को काफ़िर कहे है दुनिया, वो जिन से ज़िंदा हैं ऐब सारे
हमें भी उनमें से एक जानो कि सर न जिसने कभी झुकाया
बहुत था क़ुदरत ने तो नवाज़ा मगर न खुद को कभी तराशा
मिली न आवारगी से फ़ुर्सत, हुनर को मैंने किया है ज़ाया
थी जीती बाज़ी वही जो हारे, निशाने पर आके वो खड़ा था
लगाई तिगड़म सफल थी लेकिन मैं इश्क़ में चाल चल न पाया
इसी में जीवन सिमट रहा है ये प्यार किश्तों में बँट रहा है
नहीं मुहब्बत हो पाई साबुत कहाँ-कहाँ दिल न आज़माया
दुआएँ सज्दे सब इक जुआ हैं ख़ुदा ग़रीबों का कब हुआ है
उसी की पूरी रज़ा हुई है कभी भी जो माँगने न आया
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