इक आख़िरी रस्म निभा लो कि अब ये रिश्ता तोड़ देते हैं
तुम तो जा ही चुकी हो हम भी अब तुमसे मुँह मोड़ लेते हैं
थी झूठी सब क़समें, थे झूठे सब वादे, और वो तुम्हारे फ़रेबी इरादे
उम्मीद-ए-वफ़ा तुमसे नहीं, वफ़ा का ज़िम्मा भी ख़ुद ही पे छोड़ देते हैं
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