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Shahr Shayari
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा
हम तेरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं
Abbas Tabish
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हमको दिल से भी निकाला गया, फिर शहर से भी
हमको पत्थर से भी मारा गया, फिर ज़हर से भी
Azm Shakri
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ये शहर वो है कि कोई ख़ुशी तो क्या देता
किसी ने दिल भी दुखाया नहीं बहुत दिन से
Farhat Ehsaas
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शहर-ए-जाँ में वबाओं का इक दौर था
मैं अदा-ए-तनफ़्फ़ुस में कमज़ोर था
Pallav Mishra
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इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
Javed Akhtar
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धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
Javed Akhtar
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बाद उसके दिल-नगर फिर बस गया
एहतरामन इक गली वीरान है
Vishal Bagh
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उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
Ameer Qazalbash
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कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
Dushyant Kumar
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हमने पर्चे आंसुओं से भर दिए
और तुमने इतने कम नंबर दिए
ऊंचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
जलजले ने सब बराबर कर दिए
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Zubair Ali Tabish
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दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उसने लूटा है
Bashir Badr
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कौन ताक़ों पे रहा कौन सर-ए-राहगुज़र
शहर के सारे चराग़ों को हवा जानती है
Ahmad Faraz
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उसके कहने पे जलाई गई सारी बस्ती
तेरा कहना है कि सुल्तान बड़ा अच्छा है
Monis faraz
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मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा
बातों से मेरा दिल न लुभा शहर को बचा
Taimur Hasan
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तेरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
Ghulam Muhammad Qasir
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किस ने हमारे शहर पे मारी है रौशनी
हर इक मकाँ के ज़ख़्म से जारी है रौशनी
Nomaan Shauque
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यूँ ही नहीं बस्ती जली, यूँ ही नहीं सब लड़ मरे
कुछ लोग आये बाहरी, फिर मज़हबी दंगा हुआ
Ankit Raj
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वो जब जब ज्यादा गुस्से में होती है
बादल घिर आते हैं पूरी बस्ती पर
Siddharth Saaz
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नदी आँखें भँवर ज़ुल्फ़ें कहाँ तैरूँ कहाँ डूबूँ
कि तेरे शहर में सब की अदाएँ एक जैसी हैं
Divyansh "Dard" Akbarabadi
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अंजुम तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए
Anjum Rehbar
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