इतना मलाल क्यूँ भला ऐसा भी क्या हुआ
थोड़ी शराब में तुझे इतना नशा हुआ
उसको ख़याले ज़ीस्त था मुझको मलाले ग़म
वो भी फ़ना हुआ यहाँ मैं भी फ़ना हुआ
महफ़िल में आज आपकी कुछ कम है रौशनी
उसपे ये दिल मिरा भी है कबसे बुझा हुआ
ज़ख़्मे बदन को देख के लगता है मुझको के
दाग़े विसाल जैसे हो तन पे रखा हुआ
गाहे बगाहे जिस्म से बदबू सी आती है
ख़ुद के बदन में जैसे मैं ख़ुद हूँ गड़ा हुआ
बस होश खोना ही मेरा मकसद नहीं यहाँ
चाहत है मेरी के लगूँ सबको पिया हुआ
ताउम्र तिश्नगी मेरी तरसी है आब को
ऐसी शदीद धूप में कोई जुदा हुआ
इस शम'ये दिल को बुझने में कुछ वक्त बाकी है
इम्काने वस्ल अब भी है थोड़ा बचा हुआ
ज़िन्दा समझने की मुझे करना न भूल तू
सांसें "अमन" है चल रही पर हूँ मरा हुआ
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