तमाम आँसू अगर शब्दों में ढल जाते तो अच्छा था
तेरी यादों से हम बाहर निकल जाते तो अच्छा था
इसी इक आस में हमने कई नदियाँ बहा डालीं
ए पत्थर दिल कहीं तुम भी पिघल जाते तो अच्छा था
अदावत के कई शोले भड़कते थे मगर दिल फिर
यही कहता किसी के तुम महल जाते तो अच्छा था
खिलौना तो नहीं है वो जो उसको फिर से ला दूँगा
ए मेरे दिल कहीं तुम भी बहल जाते तो अच्छा था
सर-ए-महफ़िल बता कर यूॅूँ हुए रुस्वा हमीं तो हैं
कि सारे राज़ दिल के हम निगल जाते तो अच्छा था
पुरानी बात को लेकर, जो पछताओ! तो क्या हासिल
अगर तुम वक्त रहते ही सँभल जाते तो अच्छा था
ज़माने और थे उनके मोहब्बत और थी उनकी
जो मेहमानों से कहते थे कि कल जाते तो अच्छा था
ज़माने को बदलने की हर इक नाकाम कोशिश से
कहीं बेहतर था हम ख़ुद ही बदल जाते तो अच्छा था
सजी है बज़्म उल्फ़त की अगर 'उपदेश' ऐसे में
सभी बे-मौसमी बादल भी टल जाते तो अच्छा था
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