कभी उसको मुझसे मुहब्बत नहीं थी
मुहब्बत में उसको सहूलत नहीं थी
उसे मैंने जितना बताया था 'हैदर'
कि वो इतनी भी ख़ूबसूरत नहीं थी
मुहब्बत में ये हाल तो होना ही था
मुझे यारों कोई भी हैरत नहीं थी
उसे कैसे भी मैं बना लेता अपना
मेरी शहर में सो हुकूमत नहीं थी
मुहब्बत उसे अपनी कैसे जताता
मिरे पास कोई भी हुज्जत नहीं थी
मैं बैठा रहा बात करने को उससे
मिरे वास्ते उसको फ़ुर्सत नहीं थी
वहाँ उम्र मैंने गुज़ारी है अपनी
जहाँ पर मेरी कोई इज़्ज़त नहीं थी
उसे रोकना, काम मुश्किल नहीं था
मगर मेरी रोने की आदत नहीं थी
किसी के,मैं भी दिल में रहता,कहीं पर
मगर यारों मेरी ये क़िस्मत नहीं थी
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